Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश के खिलाफ टिप्पणी पर चिंता जताई, सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का निर्देश दिया

Shivam Y.

न्यायालय ने अपने स्वयं के प्रस्ताव पर बनाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के माध्यम से रजिस्ट्रार जनरल - मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक जिला न्यायाधीश के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी पर स्वप्रेरणा से कार्रवाई का आदेश दिया, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर करने का निर्देश दिया।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश के खिलाफ टिप्पणी पर चिंता जताई, सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का निर्देश दिया

जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को न्यायिक शिष्टाचार की रक्षा करते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। ग्वालियर खंडपीठ द्वारा जिला जज पर की गई तीखी टिप्पणियों को देखकर डिवीजन बेंच ने चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियाँ न्यायिक अधिकारियों की गरिमा को ठेस पहुँचा सकती हैं और आम जनता का विश्वास डगमगा सकती हैं।

Read in English

पृष्ठभूमि

मामला शिवपुरी जिले में दर्ज एक भ्रष्टाचार केस से जुड़ा है। इसमें रूप सिंह परिहार और इमरटलाल ने जमानत अर्जी दायर की थी, जिन्हें इस महीने की शुरुआत में एकलपीठ ने खारिज कर दिया। जमानत खारिज होने का मुद्दा नहीं था, बल्कि आदेश के पैराग्राफ 12 ने विवाद खड़ा कर दिया।

Read also:- दिल्ली उच्च न्यायालय ने परित्याग के आधार पर तलाक को बरकरार रखा, पारिवारिक न्यायालय के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील खारिज की

उस आदेश में न केवल ट्रायल कोर्ट के निर्णय की आलोचना की गई बल्कि एडिशनल सेशंस जज का नाम लेकर यह तक कह दिया गया कि उन्होंने गंभीर धाराओं में आरोप तय न करके "ग़लत लाभ" देने की नीयत से हल्की धारा लगाई।

रिकॉर्ड के अनुसार, परिहार लैंड एक्विज़िशन ऑफिस में कंप्यूटर ऑपरेटर था। उस पर मुआवज़े की राशि को ग़लत खातों में डालने का आरोप है। ट्रायल कोर्ट ने उस पर धोखाधड़ी और जालसाजी जैसी गंभीर धाराओं की बजाय केवल आपराधिक न्यासभंग (धारा 406 IPC) में आरोप तय किया। इसी पर एकलपीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई तक की सिफारिश कर दी।

जबलपुर बेंच ने इस भाषा को अस्वीकार्य बताया। कोर्ट ने कहा,

"एकलपीठ ने 1st Additional Sessions Judge की नीयत पर संदेह जताया। यह दुर्भाग्यपूर्ण और बिल्कुल अनावश्यक था।"

Read also:- बॉम्बे हाई कोर्ट ने बदलेपुर नगर परिषद को सीवर लापरवाही पर फटकार लगाई, बिल्डर पर कार्रवाई के आदेश

सुप्रीम कोर्ट के सोनू अग्रिहोत्री बनाम चंद्रशेखर (2024) मामले का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने याद दिलाया कि ऊपरी अदालतें निचली अदालतों के आदेशों की आलोचना कर सकती हैं, लेकिन व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

"गलत आदेश की आलोचना की जा सकती है, लेकिन न्यायिक अधिकारी की आलोचना से बचना चाहिए।"

जबलपुर बेंच ने रेखांकित किया कि हाईकोर्ट जिला न्यायपालिका का संरक्षक है। आदेश में कहा गया,

"हाईकोर्ट को खुद से भी ज़िला न्यायपालिका की रक्षा करनी होती है ताकि उनकी स्वतंत्रता और निर्भीकता बनी रहे।"

Read also:- दिल्ली हाई कोर्ट ने 2022 से आगे के CLAT PG अंकों पर वकीलों की भर्ती का NHAI नियम रद्द किया

अधिकार-क्षेत्र की सीमाओं के कारण डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि वह सीधे ग्वालियर आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 227 और 235 के तहत अपनी निगरानी शक्ति का उपयोग करते हुए कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल करने का निर्देश दिया।

आदेश में कहा गया,

"यह न्यायालय निर्देश देता है कि उत्तरदाता सुप्रीम कोर्ट में दस दिन के भीतर विशेष अनुमति याचिका दाखिल करे।" साथ ही स्पष्ट किया गया कि चूँकि मामला सुओ मोटू लिया गया है और इसमें कोई विरोधी पक्ष नहीं है, इसलिए हाईकोर्ट को नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है।

मामला अब 6 अक्टूबर 2025 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, ताकि इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय सर्वोच्च न्यायालय कर सके।

मामले का शीर्षक: स्वप्रेरणा से न्यायालय बनाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, महापंजीयक के माध्यम से

मामला संख्या: Writ Petition No. 38432 of 2025

Advertisment

Recommended Posts