रांची स्थित झारखंड उच्च न्यायालय ने पूर्व आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर अभियोजन के लिए पूर्व स्वीकृति (सैंक्शन) न होने के आधार पर संज्ञान आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता। यह फैसला न्यायमूर्ति अंबुज नाथ की एकल पीठ ने दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दर्ज ECIR केस संख्या 03/2018 से जुड़ा है। ED के अनुसार, पूजा सिंघल के खिलाफ झारखंड पुलिस द्वारा दर्ज 13 प्राथमिकी के आधार पर जांच शुरू की गई थी।
जांच में आरोप सामने आए कि जब पूजा सिंघल खूँटी जिले की उपायुक्त के रूप में कार्यरत थीं, तब कई विकास परियोजनाओं में सरकारी धन की बड़े पैमाने पर हेराफेरी हुई। ऑडिट रिपोर्ट में लगभग 18.06 करोड़ रुपये की कथित गड़बड़ी का उल्लेख किया गया।
ED की छापेमारी के दौरान, विभिन्न ठिकानों से करीब 19.76 करोड़ रुपये नकद, दस्तावेज और डिजिटल रिकॉर्ड जब्त किए गए। एजेंसी का दावा था कि इन पैसों का कोई वैध स्रोत नहीं बताया जा सका।
पूजा सिंघल की ओर से अदालत में दलील दी गई कि वह उस समय एक लोक सेवक थीं। इसलिए उनके खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत अभियोजन शुरू करने से पहले सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति अनिवार्य थी।
वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बिना सैंक्शन के लिया गया संज्ञान कानूनन गलत है।
ED ने इस तर्क का विरोध किया। एजेंसी ने कहा कि धारा 197 का संरक्षण केवल उन्हीं कार्यों पर लागू होता है, जो सीधे तौर पर सरकारी कर्तव्यों से जुड़े हों।
ED के अनुसार, “सरकारी धन की कथित लूट और अवैध संपत्ति जमा करना किसी भी तरह से आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं हो सकता।”
अदालत की टिप्पणियां
अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा,
“धारा 197 का उद्देश्य ईमानदार लोक सेवकों को झूठे मुकदमों से बचाना है, न कि भ्रष्टाचार को ढाल देना।”
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई कार्य पूरी तरह निजी और अवैध है, तो उसे आधिकारिक कर्तव्य से जुड़ा नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सैंक्शन का प्रश्न मुकदमे के किसी भी चरण में उठाया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर बाद में भी स्वीकृति ली जा सकती है।
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अदालत का निर्णय
सभी तथ्यों और दलीलों पर विचार करने के बाद झारखंड उच्च न्यायालय ने यह मानने से इनकार कर दिया कि केवल सैंक्शन के अभाव में संज्ञान आदेश अवैध हो जाता है।
अदालत ने पूजा सिंघल की याचिका खारिज करते हुए कहा कि विशेष अदालत द्वारा लिया गया संज्ञान इस स्तर पर बरकरार रहेगा। इसके साथ ही लंबित अंतरिम आवेदन भी निस्तारित कर दिए गए।
Case Title: Pooja Singhal vs Directorate of Enforcement
Case No.: W.P. (Cr.) No. 1043 of 2024
Case Type: Money Laundering (PMLA)
Decision Date: 22 December 2025














