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उत्तराधिकार - Legal Drafting in Hindi

उत्तराधिकार: भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र हेतु आवेदन पत्र, और वसीयत के संबंध में साक्षी का प्रमाण पत्र—हिंदी ड्राफ्ट्स व मार्गदर्शन.

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Quick Overview

यह ‘उत्तराधिकार’ पेज भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 का संदर्भ, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र हेतु धारा 372 के अंतर्गत आवेदन का हिंदी ड्राफ्ट, और वसीयत से संबंधित साक्षी प्रमाण पत्र का प्रारूप प्रदान करता है. बैंक खातों, शेयरों और अन्य देयकों की वसूली/हस्तांतरण, तथा वसीयत के प्रमाणन में उपयोगी, यह संग्रह वारिसों, वकीलों और इस्टेट प्रशासकों के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन देता है.

All templates are provided for reference and should be reviewed by legal professionals before use.

FAQs

उत्तराधिकार प्रमाणपत्र (Succession Certificate) किसके लिए आवश्यक होता है?

बैंकों/कंपनियों से देय धनराशि, जमा, शेयर, बॉन्ड, बीमा इत्यादि जैसे देयकों की वसूली/हस्तांतरण हेतु न्यायालय से जारी प्राधिकार पत्र के रूप में आवश्यक होता है.

उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कहाँ और किस धारा के अंतर्गत किया जाता है?

जिला न्यायालय/उचित न्यायालय में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 372 के अंतर्गत आवेदन किया जाता है.

आवेदन के साथ कौन-कौन से दस्तावेज संलग्न करें?

मृत्यु प्रमाण पत्र, मृतक के देनदारी/देयकों का विवरण (बैंक/शेयर आदि), रिश्तेदारी/कानूनी वारिस का विवरण, पहचान प्रमाण, NOC/आपत्ति न होने के हलफनामे (यदि उपलब्ध) और कोर्ट फीस.

प्रोबेट/LOA और उत्तराधिकार प्रमाणपत्र में क्या अंतर है?

प्रोबेट/LOA वसीयत/इस्टेट के व्यापक प्रशासन के लिए है; उत्तराधिकार प्रमाणपत्र मुख्यतः देयकों (movables—बैंक, शेयर) की वसूली/हस्तांतरण हेतु सीमित प्रयोजन का आदेश है.

क्या वसीयत होने पर भी उत्तराधिकार प्रमाणपत्र चाहिए?

कई मामलों में वसीयत के बावजूद देयकों की वसूली के लिए बैंक/कंपनियां उत्तराधिकार प्रमाणपत्र मांगती हैं; परन्तु संपत्ति के संपूर्ण प्रशासन हेतु प्रोबेट/LOA उपयुक्त रहता है.

वसीयत के संबंध में साक्षी का प्रमाण पत्र क्या है?

यह एक प्रमाण पत्र/हलफनामा है जिसमें गवाह पुष्टि करता है कि वसीयतकर्त्ता ने वसीयत पर उसकी उपस्थिति में हस्ताक्षर किए और वह सुस्थिर मन:स्थिति में था.

सुनवाई की प्रक्रिया और समय कितना लग सकता है?

अदालत नोटिस/प्रकाशन के बाद आपत्तियाँ आमंत्रित करती है; आपत्ति न होने या निस्तारण पर प्रमाणपत्र जारी होता है. समयसीमा स्थानीय भार/आपत्तियों पर निर्भर करती है.

कोर्ट फीस/स्टाम्प का निर्धारण कैसे होता है?

राज्यवार कोर्ट-फीस अधिनियम/सूची के अनुसार देय राशि के प्रतिशत/स्लैब पर निर्भर; सटीक फीस हेतु स्थानीय नियम देखें.

यदि कई वारिस हों तो क्या करना चाहिए?

सभी वारिसों को पक्षकार बनाएं/सूचित करें; NOC या संयुक्त आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाता है. आपत्ति होने पर न्यायालय साक्ष्य के आधार पर निर्णय करता है.

ड्राफ्टिंग में किन प्रमुख बिंदुओं का ध्यान रखें?

मृतक और वारिसों का पूरा विवरण, देयकों की सूची/राशि, क्षेत्राधिकार/मृतक का अंतिम निवास, नोटिस/प्रकाशन के अनुरोध, सत्यापन/हलफनामा, और सही कोर्ट-फीस.