भीड़भाड़ वाले कोर्टरूम में शुक्रवार को एक खास किस्म की खामोशी थी, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने लोकगायिका और सोशल मीडिया पर सक्रिय व्यंग्यकार नेहा सिंह राठौर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति बृज राज सिंह ने इस आदेश को सप्ताह की शुरुआत में सुरक्षित रख लिया था और 5 दिसंबर को फैसला सुनाया। यह मामला, जिस पर देशभर की नजरें थीं, फिलहाल इसी निर्णय पर ठहर गया।
पृष्ठभूमि
राठौर के खिलाफ हजरतगंज थाने, लखनऊ में केस क्राइम नं. 0111/2025 दर्ज है। आरोप है कि उन्होंने 22 अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले-जिसमें 26 हिंदू पर्यटक मारे गए-के बाद कई ट्वीट किए जिनसे कथित रूप से साम्प्रदायिक तनाव बढ़ सकता था। एफआईआर के अनुसार, उनके पोस्ट “राष्ट्रविरोधी” बताए गए और पाकिस्तान में भी खूब प्रसारित हुए, जहाँ उन्हें सराहना मिलने का दावा किया गया।
अभियुक्त पक्ष का कहना था कि उनके खिलाफ झूठा केस दर्ज किया गया है और उनके ट्वीट सरकार की आलोचना भर थे-जो लोकतंत्र में मौलिक अधिकार है। उनके वकीलों ने तर्क दिया कि भारतीय दंड संहिता की जगह आए BNS की धारा 152 (जो अब देशद्रोह की जगह लाई गई है) के लिए स्पष्ट दुर्भावनापूर्ण इरादे की जरूरत है, जो इस मामले में नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राठौर बिहार की निवासी हैं, लखनऊ की नहीं, इसलिए अंकित भारती मामले के तहत वे सीधे हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दायर कर सकती हैं।
लेकिन सरकार की दलील इससे बिल्कुल अलग थी। महाधिवक्ता ने अदालत में कहा कि राठौर ने कई बार भेजे गए नोटिसों के बावजूद पेशी से बचने की कोशिश की और “लगातार स्थान बदलती रहीं।” पुलिस रिपोर्ट में विस्तार से दर्ज था कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट-दोनों-के आदेशों के बावजूद उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति सिंह ने पहले यह माना कि आवेदिका सेशंस जज के क्षेत्राधिकार में नहीं रहतीं, इसलिए हाईकोर्ट में सीधे अर्जी लगाना नियमों के अनुरूप है। लेकिन इसके तुरंत बाद वे मामले के मूल बिंदुओं-ट्वीट्स और उनके व्यवहार-पर आए।
अदालत ने कहा कि ट्वीट्स “बेहद संवेदनशील समय” में किए गए थे, जब आतंकवादी हमले के बाद देश में तनाव का माहौल था। प्रधानमंत्री की बिहार रैली पर सवाल उठाने वाला ट्वीट, बीजेपी पर युद्ध की ओर देश को धकेलने का आरोप, और मृतकों के धर्म को लेकर उठाए गए सवाल-इन सबका अदालत ने विशेष उल्लेख किया। पीठ ने टिप्पणी की, “आवेदिका द्वारा किए गए ट्वीट प्रधानमंत्री के विरुद्ध हैं और उनके नाम का प्रयोग असम्मानजनक तरीके से किया गया है।”
इस मामले का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू था-सुप्रीम कोर्ट का पूर्व आदेश। सर्वोच्च न्यायालय ने एफआईआर रद्द करने से इनकार करते हुए राठौर को केवल यह स्वतंत्रता दी थी कि वे अपनी आपत्तियाँ आरोप तय होने के समय रख सकती हैं। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश बाध्यकारी है और हाईकोर्ट इस चरण में यह तय नहीं कर सकता कि देशद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों जैसे आरोप बनते हैं या नहीं।
अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि राठौर का “असहयोग स्पष्ट है,” क्योंकि वे बार-बार जांच अधिकारी के समन के बावजूद पेश नहीं हुईं। इससे उनके पक्ष को कोई राहत मिलना मुश्किल हो गया।
निर्णय
सभी पहलुओं को देखते हुए हाईकोर्ट ने माना कि यह अग्रिम जमानत देने का उपयुक्त मामला नहीं है। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि एफआईआर दर्ज हुए सात महीने से अधिक हो चुके हैं, फिर भी आवेदिका ने कोई सहयोग नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा: “अग्रिम जमानत का कोई आधार नहीं बनता। आवेदन खारिज किया जाता है।” हालांकि, अदालत ने यह भी जोड़ा कि राठौर कानून के तहत उपलब्ध अन्य उपायों का उपयोग कर सकती हैं।
Case Title: Neha Singh Rathore @ Neha Kumari vs. State of Uttar Pradesh & Another
Case No.: Criminal Misc. Anticipatory Bail Application U/S 482 BNSS No. 687 of 2025
Case Type: Anticipatory Bail Application
Decision Date: 05 December 2025