बॉम्बे हाईकोर्ट ने अल्ज़ाइमर पीड़ित पति की पत्नी को कानूनी संरक्षक नियुक्त किया, अभिभावकता कानूनों में कमी को बताया गंभीर

By Shivam Y. • October 3, 2025

मुंबई, 30 सितंबर: एक महत्वपूर्ण आदेश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मीना भारत मेहता को उनके 75 वर्षीय पति भरत केशवलाल मेहता की कानूनी संरक्षक नियुक्त किया, जो उन्नत अल्ज़ाइमर डिमेंशिया से जूझ रहे हैं। न्यायमूर्ति आर.आई. छागला और न्यायमूर्ति फ़रहान पी. दुबाश की खंडपीठ ने देखा कि भारत में वयस्कों के लिए अभिभावक नियुक्त करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है और ऐसी कानूनी खामियों के चलते परिवारों को राहत से वंचित नहीं किया जा सकता।

पृष्ठभूमि

यह याचिका मीना मेहता और उनकी दो बेटियों द्वारा दायर की गई थी, जिसमें यह मांग की गई थी कि उन्हें संरक्षक बनाया जाए ताकि वह अपने पति के व्यक्तिगत और वित्तीय मामलों का प्रबंधन कर सकें। 2022 से श्री मेहता बेंगलुरु के एक पुनर्वास केंद्र में रह रहे हैं, क्योंकि उनकी स्थिति बिगड़ती गई और वे पूरी तरह से देखभाल करने वालों पर निर्भर हो गए।

परिवार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सनी शाह ने तर्क दिया कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 या विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 जैसी मौजूदा विधियां अल्ज़ाइमर या इसी तरह की बीमारियों से पीड़ित वयस्कों के लिए अभिभावक नियुक्त करने का प्रावधान नहीं करतीं। उन्होंने कहा, "यहाँ एक स्पष्ट कानूनी खालीपन है," और जोड़ा कि कानूनी मान्यता के बिना मीना मेहता अपने पति के बैंक खातों और संपत्तियों का ठीक से संचालन नहीं कर पा रही थीं।

अदालत की टिप्पणियाँ

हाईकोर्ट ने पहले राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निम्हांस) को एक मेडिकल बोर्ड गठित करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। यह रिपोर्ट, 9 सितंबर को दाखिल की गई, जिसमें श्री मेहता की स्थिति को "उन्नत डिमेंशिया और 100% विकलांगता" बताया गया। डॉक्टरों ने प्रमाणित किया कि वह समय, स्थान और लोगों को पहचानने में असमर्थ हैं, बोलने की क्षमता खो चुके हैं और बुनियादी स्वच्छता के लिए भी उन्हें पूर्ण देखभाल की आवश्यकता है।

इस आकलन को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीशों ने कहा कि दूसरी राय के लिए उन्हें किसी नए अस्पताल में भर्ती कराना "कष्ट और असुविधा" ही बढ़ाएगा। अदालत ने पहले के कई मामलों का हवाला दिया, जहाँ parens patriae सिद्धांत लागू किया गया था - यानी राज्य या अदालत उन लोगों के लिए अभिभावक की भूमिका निभा सकती है जो स्वयं की देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं।

"यह कहना सही है कि वर्तमान में कोई कानून जीवनसाथी या संतान को असमर्थ वयस्क का कानूनी अभिभावक नियुक्त करने का प्रावधान नहीं करता," न्यायमूर्ति दुबाश ने टिप्पणी की। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ऐसी स्थिति में न्यायालय को मानव गरिमा की रक्षा के लिए आगे आना होगा।

फैसला

अपने आदेश में खंडपीठ ने औपचारिक रूप से मीना भारत मेहता को अपने पति की संरक्षक नियुक्त किया, जिससे उन्हें उनके बैंक खातों का संचालन करने, शेयर और बचत योजनाओं का प्रबंधन करने और विले पार्ले स्थित आवासीय संपत्ति की देखरेख करने का अधिकार मिल गया।

"सभी प्राधिकरण मीना भारत मेहता को उनके पति की कानूनी संरक्षक के रूप में मान्यता देंगे," अदालत ने निर्देश दिया, ताकि किसी प्रशासनिक रुकावट की गुंजाइश न रहे।

याचिका को इन्हीं शर्तों पर निपटा दिया गया और अदालत ने किसी भी पक्ष पर लागत का बोझ नहीं डाला।

यह निर्णय एक बार फिर दिखाता है कि भारतीय अदालतें संवैधानिक शक्तियों का सहारा लेकर उन खामियों को भर रही हैं, जहाँ मौजूदा कानून स्पष्ट प्रावधान देने में असफल रहते हैं खासकर बुजुर्ग नागरिकों के संवेदनशील मामलों में।

Case Title: Meena Bharat Mehta & Anr. vs. Union of India & Ors.

Case Number: Writ Petition (L) No. 25509 of 2025

Date Pronounced: 30th September 2025

Petitioners Counsel: Mr. Sunny Shah with Mr. Viral Dilip Shukla, Ms. Priti Shukla, Mr. Rudra M. Dani and Mr. Pradip Shukla (i/b Pradip Shukla & Co.)

Respondents Counsel:

  • Mr. D.P. Singh for Union of India
  • Ms. Jyoti Chavan, Additional Government Pleader for State of Maharashtra

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