सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लगभग चार दशक पुराने बांदा, उत्तर प्रदेश के ज़मीन विवाद से जुड़े मामले में फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने चार आरोपियों की हत्या की सजा को घटाकर गैर-इरादतन हत्या करार दिया। कोर्ट ने कहा कि भले ही तीन लोगों की मौत उनकी वजह से हुई, लेकिन हत्या की नीयत साबित नहीं हुई।
पृष्ठभूमि
यह मामला 6 अगस्त 1986 का है, जब बरुआहार घाट पर कृषि भूमि की नाप-जोख को लेकर पारिवारिक विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता राम गोपाल अपने पिता राम अवतार और चाचाओं के साथ खेत में पहुंचे, जहां उनके पड़ोसी - राघव प्रसाद, प्रेम शंकर, दयानिधि और राम नरेश - से टकराव हुआ। कहासुनी ने जल्द ही हिंसक रूप ले लिया और आरोपियों ने लाठी, भाला और बर्छी से हमला कर दिया।
राम अवतार, नामो शंकर और गिरीजा शंकर - तीनों ने उसी दिन चोटों के कारण दम तोड़ दिया। करवी की सत्र अदालत ने 1989 में आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2013 में इस फैसले को बरकरार रखा और ज़मानत पर रहे आरोपियों की गिरफ्तारी का निर्देश दिया।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने दलील दी कि पूरा मामला मुख्य रूप से राम गोपाल (PW-1) की गवाही पर आधारित है, जो मृतकों के नज़दीकी रिश्तेदार हैं। उनका कहना था कि मामला अधिकतम कम गंभीर अपराध का बनता है। वहीं, राज्य पक्ष ने तर्क दिया कि यह हत्याएं बर्बर थीं और मेडिकल सबूत अभियोजन की कहानी की पुष्टि करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों की बारीकी से जांच की। कोर्ट ने पाया कि भले ही आरोपी तेज़ हथियार जैसे भाला और बर्छी लेकर आए थे, लेकिन उनका इस्तेमाल कुंद हिस्से से किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी केवल चोट और सूजन पाई गई, धारदार घाव नहीं। “पीठ ने टिप्पणी की, ‘ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे साबित हो कि आरोपियों का हत्या करने का इरादा था, हालांकि उन्हें यह ज़रूर पता था कि उनके कृत्य से मौत हो सकती है,’” निर्णय में कहा गया।
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह मुकर गया था, जिससे हत्या के इरादे का आरोप और कमजोर हो गया।
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फैसला
अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने हत्या (धारा 302) की दोष सिद्धि को घटाकर गैर-इरादतन हत्या (धारा 304 भाग 1) में बदल दिया। पीठ ने कहा कि आरोपियों ने पहले ही 12 साल से अधिक की सजा काट ली है, जो परिस्थिति के अनुसार पर्याप्त है।
इसके साथ ही कोर्ट ने जीवित बचे अपीलकर्ताओं की तुरंत रिहाई का आदेश दिया, बशर्ते कि वे किसी अन्य मामले में वांछित न हों।
मामला: राघव प्रसाद एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
मामला संख्या: आपराधिक अपील संख्या 596/2014
निर्णय की तिथि: 26 सितंबर 2025