केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महिला अधिवक्ता की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने पूर्व साथी को मिली अग्रिम ज़मानत को रद्द करने की मांग की थी। महिला ने साथी पर विवाह का झूठा वादा कर बलात्कार, जबरन गर्भपात कराने और उसके निजी सामान की चोरी करने का आरोप लगाया था।
पृष्ठभूमि
यह मामला 2025 में एर्नाकुलम सेंट्रल पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी से जुड़ा है। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसके पुराने लॉ कॉलेज परिचित के साथ उसका संबंध समय के साथ अपमानजनक हो गया। उसने आरोप लगाया कि जुलाई 2023 में आरोपी ने विवाह का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए। जनवरी 2024 में गर्भवती होने पर दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू की, लेकिन आरोपी के परिवार के दबाव में उसे मुवाट्टुपुझा के एक अस्पताल में गर्भपात कराना पड़ा।
महिला ने आगे कहा कि नवंबर 2024 से दोनों एर्नाकुलम में एक किराए के मकान में पति-पत्नी की तरह रहे, लेकिन अलगाव के बाद आरोपी ने उसके कीमती कागज़ात, चेकबुक, आभूषण और अन्य सामान चोरी कर लिया।
मई 2025 में एर्नाकुलम की अतिरिक्त सत्र अदालत ने शर्तों के साथ आरोपी को अग्रिम ज़मानत दे दी। इस आदेश को चुनौती देते हुए शिकायतकर्ता ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528 के तहत हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति जी. गिरीश ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि दोनों अधिवक्ताओं का संबंध विशेष परिस्थितियों वाला था। उन्होंने सत्र न्यायालय के उस निष्कर्ष का उल्लेख किया कि दोनों के बीच निकटता शुरू से ही सहमति से थी। हालांकि, जज ने स्पष्ट किया कि ऐसे निष्कर्ष केवल ज़मानत तय करने के उद्देश्य से हैं और भविष्य में होने वाले मुकदमे को प्रभावित नहीं करेंगे।
"विवादित आदेश में की गई टिप्पणियाँ केवल अग्रिम ज़मानत याचिका तक सीमित हैं," पीठ ने स्पष्ट किया, "और इनका आगे की जांच व मुकदमे पर कोई असर नहीं होगा।"
अभियोजन ने दलील दी कि आरोपी जांच में पूरा सहयोग नहीं कर रहा है। मगर अदालत ने कहा कि अभियोजन ने अब तक निचली अदालत में ज़मानत रद्द करने की अर्जी दाखिल नहीं की है, जबकि ऐसा आरोप लगाया गया है।
न्यायमूर्ति गिरीश ने बताया कि ज़मानत आदेश में पहले से ही सुरक्षा उपाय शामिल हैं, जिनमें जांच में सहयोग करने और गवाहों को प्रभावित न करने की शर्तें हैं।
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"यदि किसी भी शर्त का उल्लंघन होता है," जज ने कहा, "तो जांच एजेंसी निचली अदालत में ज़मानत रद्द करने का आवेदन दे सकती है।"
निर्णय
सत्र अदालत के आदेश को कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण न मानते हुए हाईकोर्ट ने दखल से इंकार कर दिया। अदालत ने टिप्पणी की,
"अग्रिम ज़मानत देने के लिए सत्र न्यायाधीश का तर्क ग़लत नहीं कहा जा सकता।"
इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई और आरोपी को दी गई अग्रिम ज़मानत बरकरार रही।
केस का शीर्षक:- XXX बनाम केरल राज्य एवं अन्य
केस संख्या:- आपराधिक अभियोजन पक्ष संख्या 5551/2025