छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, बिलासपुर ने 3 नवंबर को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए उस खाद्य निरीक्षक की बर्खास्तगी रद्द कर दी, जिसे बचपन में दर्ज हुए दो आपराधिक मामलों के आधार पर सेवा से हटा दिया गया था। डिवीजन बेंच ने कहा कि नाबालिग अवस्था में हुई घटनाओं को वयस्क जीवन में चरित्र का पैमाना नहीं बनाया जा सकता, खासकर जब कर्मचारी की सेवा रिकॉर्ड बेदाग हो।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता प्रहलाद प्रसाद राठौर को 2018 में पूर्व सैनिक आरक्षित कोटे पर खाद्य निरीक्षक नियुक्त किया गया था। राज्य सेवा में आने से पहले वे लगभग 15 वर्ष तक भारतीय नौसेना में सेवाकाल पूरा कर चुके थे, जहाँ उनका आचरण “Exemplary” एवं “Very Good” दर्ज हुआ था और उन्हें कई Good Conduct Badges मिले थे।
लेकिन पुलिस सत्यापन के दौरान 2002 के दो आपराधिक मामलों का उल्लेख सामने आयाये मामले उस समय दर्ज हुए थे जब राठौर किशोर अवस्था में थे। 2007 में ये मामले लोक अदालत में समझौते के आधार पर निपट गए थे और आगे कोई कानूनी दायित्व नहीं बचा था। इसके बावजूद मार्च 2024 में राज्य सरकार ने इन्हीं मामलों को आधार बनाकर उन्हें सेवा से हटा दिया, यह कहते हुए कि उन्होंने सत्यापन प्रपत्र में इनका उल्लेख नहीं किया। सिंगल बेंच ने जनवरी 2025 में इस बर्खास्तगी को सही ठहराया, जिसके विरुद्ध वर्तमान अपील दायर की गई।
न्यायालय के अवलोकन
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने कहा कि ये मामले अत्यंत पुराने हैं और उस समय हुई घटनाएँ हैं जब अपीलकर्ता अभी बालक थे। महत्वपूर्ण यह कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 24 स्पष्ट रूप से कहती है कि बाल अपराधी (Child in Conflict with Law) को वयस्क जीवन में ऐसे मामलों का दुष्प्रभाव नहीं भुगतना चाहिए।
पीठ ने टिप्पणी की“घटनाक्रम के समय अपीलकर्ता नाबालिग थे। कानून चाहता है कि ऐसे हालात किसी व्यक्ति के भविष्य पर स्थायी छाया न डालें।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Avtar Singh बनाम Union of India तथा Ravindra Kumar बनाम State of Uttar Pradesh जैसे फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया है कि तुच्छ या बहुत पुराने मामलों को जानकारी छिपाने जैसा गंभीर अपराध नहीं माना जा सकता। अपीलकर्ता के नौसेना में उत्कृष्ट सेवा रिकॉर्ड ने उनके पक्ष को मजबूत किया। पीठ ने कहा “पंद्रह वर्षों का उत्कृष्ट सेवा आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
साथ ही न्यायालय ने पाया कि बर्खास्तगी बिना किसी सुनवाई के आदेशित की गई थी, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। पीठ ने स्पष्ट कहा “प्रक्रिया में निष्पक्षता कोई औपचारिकता नहीं, यह संवैधानिक आवश्यकता है।”
निर्णय
अपील स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने 15 मार्च 2024 की बर्खास्तगी तथा 7 जनवरी 2025 के सिंगल जज आदेश— दोनों को रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि इसके सभी सेवा संबंधी लाभ स्वतः लागू होंगे। आदेश यहीं समाप्त हुआ और कोई अतिरिक्त निर्देश नहीं दिए गए।
Case Title: Prahlad Prasad Rathour v. State of Chhattisgarh & Others (2025)
Court: High Court of Chhattisgarh, Bilaspur
Bench: Chief Justice Ramesh Sinha and Justice Bibhu Datta Guru
Case Type: Writ Appeal (WA No. 785 of 2025)
Appellant: Prahlad Prasad Rathour (Ex-Serviceman, Food Inspector)
Respondents: State of Chhattisgarh & Food and Civil Supplies Department