सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजस्थान के बूंदी जिले से जुड़े राजेश मामले में एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण जारी किया, जिसके तहत ट्रायल कोर्ट को यह स्वतंत्र अधिकार दिया गया है कि वह उसकी नियमित जमानत याचिका पर अपने अनुसार निर्णय ले सके। यह मामला, जो इस वर्ष राजस्थान हाई कोर्ट से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा, तब फिर से केंद्र में आया जब शिकायतकर्ता ने जमानत बॉन्ड रद्द कराने और निचली अदालत के न्यायिक अधिकारी की भूमिका पर आपत्ति जताई।
पृष्ठभूमि
यह मामला वर्ष 2023 में दर्ज एफआईआर से शुरू होता है, जिसे थाना डाबी, जिला बूंदी में दर्ज किया गया था। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471 और 166 के तहत धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप लगाए गए थे।
राजेश ने पहले राजस्थान हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत मांगी थी, जिसे मार्च 2025 में खारिज कर दिया गया।
इसके बाद मामला विशेष अनुमति याचिका के रूप में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अप्रैल 2025 में अदालत ने गिरफ्तारी से अस्थायी सुरक्षा दी, लेकिन बाद में विस्तृत सुनवाई के बाद 20 मई 2025 को याचिका खारिज कर दी गई।
इसके बाद शिकायतकर्ता ने ट्रायल कोर्ट में जमानत बॉन्ड रद्द करने का अनुरोध किया, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने 30 जून 2025 को यह अनुरोध ठुकरा दिया। इसी आदेश के खिलाफ वर्तमान स्पष्टीकरण याचिका सुप्रीम कोर्ट में लाई गई।
अदालत के अवलोकन
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति नोंगमीकापम कोटिस्वर सिंह की पीठ ने यह परखा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद भी ट्रायल कोर्ट ने जमानत बॉन्ड रद्द क्यों नहीं किए।
पीठ ने पाया कि संबंधित न्यायिक अधिकारी का निर्णय किसी भी गलत इरादे या पक्षपात से प्रेरित नहीं था। वरिष्ठ अधिवक्ता पल्लव सिसोदिया द्वारा न्यायिक अधिकारी की ओर से प्रस्तुत स्पष्टीकरण को अदालत ने स्वीकार करते हुए स्पष्टता का आधार माना।
पीठ ने कहा, “उक्त आदेश किसी दुर्भावना या गलत उद्देश्य से पारित नहीं किया गया था। न्यायिक अधिकारी ने उपलब्ध परिस्थितियों और सामग्री के आधार पर ही कार्य किया।”
अदालत ने मामले में सहायता देने वाले अमीकस क्यूरी और वरिष्ठ वकीलों के योगदान की भी सराहना की।
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निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने आवेदन का निस्तारण करते हुए दो प्रमुख निर्देश दिए:
- अब ट्रायल कोर्ट राजेश द्वारा दायर किसी भी नियमित जमानत याचिका पर स्वतंत्र रूप से और अपने विवेक से निर्णय कर सकेगा। इसके लिए उसे सुप्रीम कोर्ट में हुई पूर्व कार्यवाही से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
 - न्यायिक अधिकारी के खिलाफ किसी भी प्रकार की नकारात्मक टिप्पणी, प्रभाव या सेवा रिकॉर्ड में प्रतिकूल प्रविष्टि नहीं की जाएगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले से जुड़े आदेश अधिकारी के करियर को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।
 
इन स्पष्ट निर्देशों के साथ मामला समाप्त कर दिया गया।
Case Title: Rajesh vs State of Rajasthan & Another
Court: Supreme Court of India
Case Type: Criminal Appeal / Miscellaneous Application in SLP (Crl.)
FIR Details:
- FIR No.: 44/2023
 - Police Station: Dabi, District Bundi (Rajasthan)
 - Charges: Sections 420, 467, 468, 471, 166 IPC (Cheating, Forgery, Using Forged Documents, Public Servant Misconduct)
 










