बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में भारी भीड़ वाली सुनवाई के दौरान, विशाल पैमाने पर हुई उड़ान रद्दीकरण की घटनाओं पर केंद्र सरकार से कड़े और सीधे सवाल पूछे गए। यह PIL उन यात्रियों के लिए दायर की गई थी जो पिछले कई दिनों में अचानक एयरपोर्ट पर फँस गए थे। माहौल कई बार तनावपूर्ण भी हो गया, मानो जज अब अस्पष्ट जवाबों से थक चुके हों। जैसे-जैसे बहस आगे बढ़ी, यह साफ हो गया कि पीठ अब किसी भी आधे-अधूरे स्पष्टीकरण को स्वीकार करने के मूड में नहीं थी।
पृष्ठभूमि
एडवोकेट अखिल राणा द्वारा दायर इस जनहित याचिका में “इंडिगो संकट” की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि भारी रद्दीकरण, अचानक बढ़े किराए और प्रशासनिक तैयारी की कमी जैसे मुद्दों को देखते हुए अदालत की सीधी निगरानी ज़रूरी है।
लेकिन सरकार की ओर से कदमों का विवरण शुरू ही हुआ था कि अदालत ने सबसे पहले याचिकाकर्ता पर ही सवाल उठा दिए। मुख्य न्यायाधीश ने हल्की नाराज़गी के साथ कहा, “आप पूरी तरह से अवगत नहीं हैं और PIL दाखिल कर दी… यह कोई मरी-गो-राउंड नहीं है।”
इसके बावजूद, जजों ने साफ किया कि यह मामला भारी सार्वजनिक हित का है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
अदालत की टिप्पणियाँ
जब केंद्र ने विस्तृत जानकारी देना शुरू की, तभी पीठ ने सीधे सवाल दागे कि आखिर यह स्थिति बिगड़ी कैसे।
एक समय मुख्य न्यायाधीश ने तीखे स्वर में पूछा, “क्या आप लाचार हैं? एयरलाइंस निर्देशों का पालन न करें तो आप क्या कार्रवाई कर सकते हैं?”
सरकार ने बताया कि DGCA लगातार सलाह देता रहा है और एक उच्चस्तरीय जांच समिति गठित की जा चुकी है। लेकिन अदालत संतुष्ट नहीं दिखी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “ये उपाय संकट के बाद उठाए गए। सवाल यह है कि संकट पैदा ही क्यों हुआ?”
DGCA के वकील ने पायलटों के आराम और सुरक्षा से जुड़े FDTL नियमों की वर्षों पुरानी प्रक्रिया समझाई, लेकिन जब उन्होंने कहा कि कुछ पायलट “दो की जगह पाँच-छह लैडिंग कर रहे थे”, तो अदालत में चिंता साफ दिखाई दी। न्यायमूर्ति गेडेला ने तुरंत पूछा, “इसका मतलब सुरक्षा से समझौता हुआ, क्या ऐसा नहीं है?”
जजों ने बढ़े हुए किराए पर भी कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि ₹5,000 का टिकट अचानक ₹30,000–₹39,000 में बिक रहा था। पीठ ने पूछा, “संकट के दौरान एयरलाइंस को फायदा उठाने की इजाज़त कैसे मिल सकती है? ऐसे किराए को कैसे सही ठहराया जा सकता है?”
इंडिगो की ओर से वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि स्थिति सिर्फ रोस्टर की वजह से नहीं बनी, बल्कि तकनीकी दिक्कतें और स्टाफ की कमी भी कारण थीं। उन्होंने आग्रह किया कि समिति की रिपोर्ट आने से पहले कोई निष्कर्ष न निकाला जाए।
लेकिन पीठ ने साफ कहा: “मुआवज़ा आपको तुरंत देना शुरू करना होगा। इसे बहुत स्पष्ट मानिए।”
निर्णय
अपने आदेश में हाई कोर्ट ने माना कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय और DGCA ने कई कदम उठाए हैं, परन्तु यह भी कहा कि लाखों यात्रियों का यूँ फँस जाना “सिर्फ व्यक्तिगत परेशानी नहीं है, यह देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है।” अदालत ने निर्देश दिया कि इंडिगो मुआवज़ा नियमों का कड़ाई से पालन करे, और केंद्र व DGCA इसकी निगरानी सुनिश्चित करें।
मामले की अगली सुनवाई 22 जनवरी 2026 को होगी, जिसमें अदालत समिति की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में देखना चाहती है।
Case Title: Akhil Rana & Anr. v. Union of India & Ors.
Case No.: Not specified in the order excerpt
Case Type: Public Interest Litigation (PIL)
Decision Date: 11 December 2024 (order discussed during the hearing)