दिल्ली हाईकोर्ट ने मृत पति के परिवार पर दर्ज दहेज उत्पीड़न केस किया खारिज, कहा- आरोप अस्पष्ट और कानून का दुरुपयोग

By Shivam Y. • October 9, 2025

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत अस्पष्ट आरोपों और कानून के दुरुपयोग का हवाला देते हुए पति के परिवार के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को रद्द कर दिया। - श्रीमती करुणा सेजपाल गुप्ता और अन्य। बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) एवं अन्य।

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दहेज उत्पीड़न के मामले में आरोपी तीन पारिवारिक सदस्यों को बड़ी राहत दी है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने 8 अक्टूबर 2025 को दिए गए निर्णय में कहा कि आरोप "अस्पष्ट, विरोधाभासी और न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग" हैं। अदालत ने CRL.M.C. 1593/2018 में दर्ज एफआईआर नंबर 612/2016 (थाना बिंदापुर, नई दिल्ली) को रद्द कर दिया।

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यह मामला एक दुखद विवाह टूटने से जुड़ा था, जो केवल चालीस दिन ही चला। पति कृष्णानंद गुप्ता ने पुणे में आत्महत्या कर ली थी। उनकी पत्नी निशा गुप्ता ने बाद में अपने ससुरालवालों करुणा सेजपाल गुप्ता (ननद), कनैया राम गुप्ता (ससुर) और कमलेश गुप्ता (सास) पर दहेज मांगने और मानसिक उत्पीड़न के आरोप लगाए।

पृष्ठभूमि

कृष्णानंद गुप्ता और निशा गुप्ता का विवाह 4 मार्च 2016 को वाराणसी में हुआ था। विवाह के बाद दोनों मलेशिया हनीमून पर गए और फिर पुणे में बस गए, जहाँ कृष्णानंद एक निजी कंपनी में कार्यरत थे। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, शादी सादे ढंग से हुई थी और कोई दहेज नहीं मांगा गया था।

हालाँकि, कुछ ही दिनों में संबंधों में दरार आ गई। विवाह के मात्र 40 दिन बाद, 13 अप्रैल 2016 को कृष्णानंद ने आत्महत्या कर ली। ससुराल पक्ष का कहना था कि वह मानसिक तनाव में था और पत्नी एवं उसके परिवार के दबाव में था। वहीं, निशा का आरोप था कि ससुरालवालों ने 14 लाख रुपये की मांग की थी ताकि ननद के घर के निर्माण के लिए पैसा मिल सके, और यही दबाव उसके पति की मौत का कारण बना।

घटना के बाद दोनों पक्षों ने शिकायतें दर्ज कराईं। पति के पिता ने पुणे पुलिस से निष्पक्ष जांच की मांग की, जबकि निशा ने दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा (महिला प्रकोष्ठ) में दहेज उत्पीड़न की शिकायत दी।

अदालत के अवलोकन

न्यायालय ने सबसे पहले यह जांचा कि क्या दिल्ली की अदालतों को इस मामले की भौगोलिक अधिकारिता (territorial jurisdiction) प्राप्त है, क्योंकि विवाह, कथित उत्पीड़न और आत्महत्या सभी दिल्ली से बाहर हुए थे। न्यायमूर्ति कृष्णा ने रूपाली देवी बनाम राज्य हरियाणा और सुनीता कुमारी कश्यप बनाम राज्य बिहार जैसे फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि "महिला पर हुए मानसिक उत्पीड़न के प्रभाव उसके पैतृक घर में भी जारी रहते हैं," इसलिए दिल्ली अदालत को अधिकारिता प्राप्त है क्योंकि निशा अपने पति की मृत्यु के बाद दिल्ली में रह रही है।

इसके बाद अदालत मुख्य मुद्दे पर आई कि क्या आईपीसी की धारा 498A, 406 और 34 के तहत एफआईआर ठोस सबूतों पर आधारित थी। न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि आरोप काफी हद तक "निष्पक्ष और सर्वव्यापी" थे, जिनमें दहेज के लेन-देन या उत्पीड़न का कोई ठोस सबूत नहीं था।

"सिर्फ टिकट बुक कराना या पारिवारिक मुलाकातों को उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता," अदालत ने टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता के बयान विरोधाभासी हैं एक जगह कहा गया कि मांग दिल्ली में हुई और दूसरी जगह कि पुणे में। "ऐसे विरोधाभास शिकायत की विश्वसनीयता को कमजोर करते हैं," अदालत ने कहा।

अदालत ने मृतक और उसकी बहन के बीच हुई व्हाट्सएप चैट्स का भी विश्लेषण किया, जिन्हें खुद निशा ने सबूत के रूप में प्रस्तुत किया था। इन संदेशों में किसी भी प्रकार के उत्पीड़न का संकेत नहीं मिला।

“ये बातचीत यह दर्शाती है कि मृतक गहरे मानसिक तनाव में था, जबकि उसकी बहन उसे समझाने का प्रयास कर रही थी,” अदालत ने कहा।

निर्णय

अदालत ने पाया कि दहेज मांगने या उत्पीड़न का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। इसलिए, इस मामले की कार्यवाही जारी रखना न्याय के विपरीत होगा। न्यायमूर्ति कृष्णा ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों दिगंबर बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) और दारा लक्ष्मी नारायण बनाम तेलंगाना राज्य (2024) का हवाला देते हुए कहा कि "अस्पष्ट और प्रतिशोधी आरोपों पर दर्ज एफआईआर को खारिज करना न्यायसंगत है।"

अदालत ने कहा, "वर्तमान शिकायत स्पष्ट रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है,” और यह भी कि “सिर्फ सामान्य आरोप, बिना सबूत, धारा 498ए आईपीसी को लागू नहीं कर सकते।”

अंततः अदालत ने थाना बिंदापुर, नई दिल्ली में दर्ज एफआईआर संख्या 612/2016 तथा उससे संबंधित सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ताओं को मुक्त कर दिया गया।

इसके साथ ही मामला समाप्त हो गया अदालत ने संकेत दिया कि वैवाहिक विवादों को यदि समय रहते संभाला न जाए, तो वे वर्षों तक चलने वाली कड़वी कानूनी लड़ाई में बदल सकते हैं।

Case Title: Smt. Karuna Sejpal Gupta & Ors. vs. State (Govt. of NCT of Delhi) & Anr.

Case Number: CRL.M.C. 1593/2018 & CRL.M.A. 5777/2018

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