इस बात की सख्त याद दिलाते हुए कि आपसी अपमान पर टिकी शादियां टिक नहीं सकतीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को रीता राज, वरिष्ठ भारतीय रेलवे ट्रैफिक सर्विस अधिकारी, और पबित्र राय चौधुरी, एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट, के बीच तलाक के आदेश को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति अनिल क्षेतरपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने पत्नी की अपील खारिज करते हुए कहा कि उसका व्यवहार मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है, जैसा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) में परिभाषित है।
पृष्ठभूमि
रीता राज और पबित्र राय चौधुरी की शादी 2010 में हुई थी। दोनों की यह दूसरी शादी थी। दो शिक्षित पेशेवरों का यह विवाह शुरू में सम्मानजनक दिखा, लेकिन कुछ ही महीनों में तल्खी आ गई। मार्च 2011 तक दोनों अलग हो गए।
पति ने आरोप लगाया कि पत्नी नियमित रूप से उसे "हरामज़ादा", "जानवर" जैसी गालियां देती थी और उसकी मां को भी अपमानजनक शब्दों से पुकारती थी। अदालत में प्रस्तुत कुछ संदेशों में उसने उसके पिता की वैधता तक पर सवाल उठाए थे।
वहीं, रीता ने दावा किया कि असली पीड़िता वही थी - उसके पति ने उसे घर में बंद किया, परिवार ने उसे अपमानित किया और पति ने उसकी सरकारी पद का दुरुपयोग करने का दबाव बनाया ताकि उसे पेशेवर लाभ मिले। उसने यहां तक आरोप लगाया कि सास ने विदेश यात्रा के लिए ₹50,000 मांगे थे।
अदालत के अवलोकन
हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी के संदेशों में प्रयुक्त भाषा इतनी अशोभनीय और अपमानजनक थी कि कोई भी समझदार व्यक्ति मानसिक पीड़ा महसूस करेगा।
“पीठ ने कहा, ‘बार-बार गाली और माता-पिता के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग केवल गुस्सा नहीं, बल्कि गंभीर मानसिक क्रूरता है।’”
अदालत ने पत्नी का यह दावा - कि पति ने उसके फोन से खुद को संदेश भेजे - "अविश्वसनीय और बाद में गढ़ी गई कहानी" बताया।
सुप्रीम कोर्ट के समर घोष बनाम जया घोष और वी. भगत बनाम डी. भगत जैसे मामलों का हवाला देते हुए, अदालत ने दोहराया कि मानसिक क्रूरता को अलग-अलग घटनाओं से नहीं, बल्कि समग्र व्यवहार से आंका जाना चाहिए।
न्यायाधीशों ने लिखा -
"पति को नाजायज़ कहने, मां को वेश्या कहने और ससुराल वालों को घर से निकालने जैसी घटनाएं लगातार क्रूरता के पैटर्न को दिखाती हैं।"
पीठ ने यह भी कहा कि हालांकि पति का आचरण-जैसे कि कई मुकदमे दायर करना-"पूरी तरह उचित नहीं" था, लेकिन इससे पत्नी की क्रूरता के सबूत मिट नहीं सकते।
क्षमा और भरण-पोषण
रीता ने यह दलील दी कि 2011 से 2013 के बीच दोनों फिर साथ रहे, इसलिए पहले की क्रूरता क्षमादान (condonation) के तहत माफ हो जानी चाहिए। अदालत ने यह तर्क खारिज किया, यह कहते हुए कि उसने किसी ठोस सबूत से इसे साबित नहीं किया।
अदालत ने कहा -
“क्षमादान के लिए पूर्ण ज्ञान और सच्चे इरादे से क्षमा करना आवश्यक होता है। ऐसा कोई संकेत यहां नहीं है।”
स्थायी भरण-पोषण (permanent alimony) की मांग को भी अदालत ने ठुकरा दिया।
"अपीलकर्ता, जो ग्रुप ‘A’ की आईआरटीएस अधिकारी हैं और जिन्हें पर्याप्त वेतन व सुविधाएं मिलती हैं, आर्थिक रूप से निर्भर नहीं हैं,"
पीठ ने कहा। "स्थायी भरण-पोषण सामाजिक न्याय का उपाय है, धन-संग्रह का साधन नहीं।"
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पहले की कार्यवाही में पत्नी ने स्वयं कहा था कि यदि पति ₹50 लाख दे दे तो उसे तलाक से कोई आपत्ति नहीं। न्यायालय ने इसे “भावनात्मक नहीं, बल्कि आर्थिक प्रेरणा” करार दिया।
अदालत का निर्णय
निष्कर्षतः, दिल्ली हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि यह विवाह “पूरी तरह से बिखर चुका है” और इसे पुनर्जीवित करने की कोई संभावना नहीं बची है।
न्यायमूर्ति शंकर ने आदेश सुनाते हुए कहा,
“यह रिश्ता कटुता और मुकदमों में खत्म हो चुका है। व्यावहारिक रूप से अब कोई वैवाहिक बंधन नहीं बचा है।”
इस फैसले के साथ, 2011 में शुरू हुई 14 साल पुरानी कानूनी लड़ाई का अंत हो गया, जिसने दिल्ली के एक चर्चित पेशेवर दंपती के बीच के विवाद को समाप्त किया।
Case Title: Rita Raj vs. Pabitra Roy Chaudhuri
Case Number: MAT.APP.(F.C.) 2/2024 & CM APPL. 360/2024
Judgment Pronounced On: 17 October 2025