हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने विवाहित बेटी की दया नियुक्ति याचिका पर पुनर्विचार का आदेश दिया

By Shivam Y. • September 12, 2025

सविता बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य - हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को विवाहित बेटी की अनुकंपा नौकरी की याचिका पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया, तथा पहले की अस्वीकृति को अनुचित और लिंग-पक्षपाती बताया।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह सेवा के दौरान मृत कर्मचारी की विवाहित बेटी द्वारा दया नियुक्ति (compassionate appointment) की मांग पर दोबारा विचार करे। अदालत ने माना कि अधिकारियों ने आय मानदंड को गलत तरीके से लागू किया और विवाहित बेटियों के अधिकारों पर उच्च न्यायालयों के फैसलों को नजरअंदाज करते हुए उसका दावा अस्वीकार कर दिया।

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पृष्ठभूमि

सविता के पिता राज्य शिक्षा विभाग में जूनियर बेसिक ट्रेनड टीचर थे और अप्रैल 2012 में सेवा के दौरान उनका निधन हो गया। पीछे उनकी पत्नी और तीन विवाहित बेटियाँ रह गईं।

सविता ने 2018 में दया नियुक्ति के लिए आवेदन दिया, लेकिन विभाग ने यह कहकर उसकी मांग ठुकरा दी कि नीति में विवाहित बेटियों के लिए प्रावधान नहीं है। इसके बाद सविता अदालत गई और उसे राहत मिली। अदालत ने अधिकारियों को आदेश दिया कि वे उसके मामले पर ममता देवी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य फैसले को ध्यान में रखकर दोबारा विचार करें। उस फैसले में स्पष्ट किया गया था कि विवाहित बेटियाँ भी यदि पात्रता मानदंड पूरी करें तो दया नियुक्ति की हकदार हैं।

इसके बावजूद, विभाग ने 2023 में उसका आवेदन फिर से खारिज कर दिया इस बार यह कहते हुए कि उसने पिता की मौत के छह साल बाद आवेदन किया और परिवार की सालाना आय तय सीमा से ज्यादा है।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना रेवाल दुआ ने मामले की सुनवाई करते हुए साफ कहा कि अधिकारियों द्वारा दिए गए दोनों कारण “ठोस नहीं” हैं।

विलंब के तर्क पर अदालत ने कहा कि सविता ने तुरंत आवेदन इसलिए नहीं किया क्योंकि उस समय सरकार विवाहित बेटियों को पात्र ही नहीं मानती थी। न्यायमूर्ति ने कहा,

"उसने 2018 में आवेदन किया और बाद में ममता देवी फैसले के बाद फिर से प्रयास किया, जिसने उसका अधिकार स्पष्ट कर दिया। ऐसे में उसे देरी के लिए दोषी ठहराना अनुचित है।"

दूसरे कारण - आय सीमा पार होने - पर अदालत ने और सख्ती से टिप्पणी की। अधिकारियों ने मृतक शिक्षक के परिवार को केवल दो सदस्य का मानकर प्रति व्यक्ति आय निकाल दी, जिससे सीमा पार हो गई। अदालत ने कहा यह गणना गलत है।

पिछले फैसले राकेश कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य को उद्धृत करते हुए न्यायालय ने कहा,

"सिर्फ इसलिए कि बेटी विवाहित है, इसका मतलब यह नहीं कि वह अपने पिता के परिवार की सदस्य नहीं रही… यदि अदालत इस मानदंड को मंजूरी दे दे तो वह लैंगिक असमानता को भी मंजूरी दे रही होगी।"

अदालत ने यह भी कहा कि सरकार की 2019 की नीति खुद चार सदस्य का परिवार मानकर आय गणना करती है। इस फॉर्मूले से भी सविता के मायके और उसके अपने परिवार की संयुक्त आय तय सीमा से कम ही निकलती है।

फैसला

अदालत ने माना कि अधिकारियों ने नियमों को गलत और अनुचित तरीके से लागू किया। उसने सविता की याचिका को स्वीकार करते हुए पिछले सभी अस्वीकृति आदेश रद्द कर दिए और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि छह हफ्तों के भीतर सविता के दया नियुक्ति मामले पर दोबारा विचार कर उपयुक्त आदेश पारित करे।

इसके साथ ही याचिका निपटा दी गई। अब राज्य सरकार को अदालत के निर्देशों के मुताबिक सविता के रोजगार अनुरोध पर नया निर्णय लेना होगा।

केस का शीर्षक: सविता बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य

केस संख्या: सीडब्ल्यूपी संख्या 3070/2023

निर्णय की तिथि: 05 सितंबर 2025

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