धारवाड़ स्थित कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक युवती की गुमशुदगी को लेकर कड़ी चिंता व्यक्त की है, जो लगभग नौ महीने से लापता है और पुलिस की लगातार कोशिशों के बावजूद अब तक उसका कोई पता नहीं चल पाया है। जस्टिस एस.जी. पंडित और जस्टिस सी.एम. पूनाचा की खंडपीठ एक हैबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें लापता महिला को पेश करने की मांग की गई थी।
पृष्ठभूमि
मामला दिसंबर 2023 का है, जब युवती, जो एक एकाउंटेंट के रूप में काम कर रही थी, अपने माता-पिता से मिलने घर आई थी और बाद में वापस हब्ल्ली चली गई। कुछ दिनों बाद उसका मोबाइल फोन बंद हो गया और परिवार से कोई संपर्क नहीं हुआ। 27 दिसंबर को गुमशुदगी की शिकायत दर्ज की गई, लेकिन जांच में प्रगति न होने पर मई 2024 में परिवार हाईकोर्ट पहुंचा।
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इसके बाद पुलिस ने हलफनामे और स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कीं, यहां तक कि वरिष्ठ अधिकारी भी अदालत में पेश हुए। इसके बावजूद महीनों बीतने के बाद भी महिला का कोई सुराग नहीं लगा।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायाधीशों ने कहा कि रिपोर्टों से यह तो दिख रहा है कि कार्रवाई की जा रही है, लेकिन ठोस नतीजा सामने नहीं आया। असंतोष व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा:
"सार यही है कि जिस बेटी की उपस्थिति सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है, वह अब भी लापता है। वर्तमान स्थिति अत्यंत चिंताजनक है, जिससे इस अदालत को सोचना पड़ रहा है कि आगे क्या कदम उठाए जाएं।"
अदालत ने राज्य व केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों और सर्कुलरों का विस्तार से उल्लेख किया, खासकर गुमशुदा व्यक्तियों विशेष रूप से महिलाओं और नाबालिगों से जुड़े मामलों पर। सुप्रीम कोर्ट के बचपन बचाओ आंदोलन फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि बच्चों की गुमशुदगी की शिकायतों को तब तक अपहरण या तस्करी का मामला माना जाना चाहिए जब तक जांच में कुछ और साबित न हो।
निर्णय
महत्वपूर्ण आदेश देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब भी गुमशुदा महिला, नाबालिग या अन्य कमजोर वर्गों से जुड़े मामलों में हैबियस कॉर्पस याचिकाएं दायर हों, तब एक विशेष निगरानी समिति का गठन किया जाए।
इस समिति में संबंधित रेंज के पुलिस महानिरीक्षक, जिले के पुलिस अधीक्षक और क्षेत्रीय पुलिस उपाधीक्षक शामिल होंगे। समिति को निम्न कार्य करने होंगे:
- हर तीन महीने में पुलिस जांच की समीक्षा।
- सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना।
- "खोया पाया" और "ट्रैक द मिसिंग चाइल्ड" जैसे पोर्टल का उपयोग अनिवार्य करना।
- यदि प्रगति ठप हो तो सीबीआई, सीआईडी या एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट जैसी एजेंसियों को शामिल करना।
समिति को हर छह महीने में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को रिपोर्ट देनी होगी। यदि रजिस्ट्रार उसे असंतोषजनक पाएंगे तो मामला फिर से अदालत की निगरानी में खोला जा सकता है।
इन निर्देशों के साथ, याचिका का निपटारा कर दिया गया।
केस का शीर्षक: रामकृष्ण भट्ट बनाम पुलिस महानिदेशक एवं अन्य।
केस संख्या: WPHC संख्या 100012/2024