कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ में न्यायमूर्ति एस. विश्वजीत शेट्टी ने शुक्रवार (26 सितम्बर 2025) को हावेरी के एक फार्मा व्यापारी द्वारा दायर आपराधिक याचिका पर महत्वपूर्ण आदेश सुनाया। याचिकाकर्ता विष्णुवंथ कदली ने अपने खिलाफ चल रही कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी, जिसमें उन पर बिना लाइसेंस वाले चिकित्सक को एलोपैथिक दवाइयाँ सप्लाई करने का आरोप था। कोर्ट ने हालांकि उनकी याचिका खारिज कर दी और अभियोजन को वैध माना।
पृष्ठभूमि
यह मामला गदग सर्कल के सहायक औषधि नियंत्रक द्वारा दायर एक निजी शिकायत से शुरू हुआ। आरोप था कि सिद्धप्पा चन्नाबसप्पा नेकर नामक व्यक्ति, जो पंजीकृत चिकित्सक नहीं थे, गदग जिले के लक्ष्मेश्वर में ‘संजीवनी क्लिनिक’ चला रहे थे। बिना आवश्यक लाइसेंस के, नेकर मरीजों को दवाइयाँ बाँट रहे थे।
शिकायत के अनुसार, ये दवाइयाँ हावेरी स्थित एम/एस कदली फार्मा के मालिक विष्णुवंथ कदली द्वारा सप्लाई की गईं। कदली के पास फॉर्म 20बी और फॉर्म 21बी का लाइसेंस था, पर इन लाइसेंसों के तहत दवाइयाँ केवल उन्हीं को बेची जा सकती थीं जिनके पास वैध औषधि लाइसेंस हो। आरोप है कि उन्होंने इस शर्त का उल्लंघन किया, जिसके चलते उन पर 1940 के ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 18(A)(vi) और 27(डी) के तहत आपराधिक मामला बना।
अदालत की टिप्पणियाँ
बचाव पक्ष ने दलील दी कि यह मामला समयसीमा (लिमिटेशन) से बाहर है क्योंकि अधिकतम सज़ा केवल दो साल है। साथ ही यह भी कहा गया कि शिकायत दर्ज करने वाले सहायक औषधि नियंत्रक को गदग जिले में ऐसा करने का अधिकार नहीं था, क्योंकि उनका गजट नोटिफिकेशन केवल शिवमोग्गा सर्कल के लिए जारी हुआ था।
न्यायमूर्ति शेट्टी ने इन दलीलों को अस्वीकार किया। भारत दामोदर काले बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम घनश्याम जवेरी जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक बार अधिकारी को धारा 21 के तहत इंस्पेक्टर नियुक्त कर दिया जाए, तो तबादले के बाद भी उसकी शक्ति बनी रहती है। अदालत ने कहा-
“हर बार ट्रांसफर के बाद नया नोटिफिकेशन निकालना व्यवहारिक नहीं है। ऐसा संकीर्ण दृष्टिकोण कानून के उद्देश्य को ही निष्फल कर देगा।”
सीमा अवधि पर, कोर्ट ने कहा कि चूंकि दोनों अभियुक्तों के खिलाफ आरोप हैं और उनमें से एक अपराध की सज़ा पांच साल तक है, इसलिए धारा 468 दंड प्रक्रिया संहिता लागू नहीं होगी।
कदली की ओर से यह भी दलील दी गई कि केवल सत्र न्यायालय ही सीधे ऐसी शिकायत सुन सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया-
“यद्यपि धारा 32 कहती है कि सत्र न्यायालय से नीचे की अदालतें ऐसे मामले की सुनवाई नहीं कर सकतीं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सत्र न्यायालय बिना मजिस्ट्रेट के कमिटल के सीधे संज्ञान ले सकता है। यहाँ मजिस्ट्रेट ने मामला सत्र न्यायालय को सौंप दिया है, जो विधिसम्मत है।”
निर्णय
सभी तर्कों पर विचार करने के बाद न्यायमूर्ति शेट्टी ने माना कि शिकायत एक सक्षम अधिकारी द्वारा दायर की गई थी, मजिस्ट्रेट ने सही प्रक्रिया का पालन किया और मामला समयसीमा से बाहर नहीं है। नतीजतन, याचिका खारिज कर दी गई।
इस आदेश का सीधा अर्थ है कि कदली और अवैध चिकित्सक नेकर को अब सेशंस कोर्ट में मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।
Case Title: Vishwanath S/o Doddabasappa Kadli vs. The State of Karnataka
Case Number: Criminal Petition No. 103433 of 2024
Date of Order: 26th September, 2025