दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को अपहरण, बाल विवाह और यौन शोषण से जुड़े संवेदनशील मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने अखिलेश और अन्य द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पीड़िता के साथ हुए समझौते के आधार पर मामला खत्म करने की मांग की गई थी। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम जैसे गंभीर अपराधों को केवल समझौते से दरकिनार नहीं किया जा सकता।
पृष्ठभूमि
यह मामला दिसंबर 2023 में भलस्वा डेयरी थाने में दर्ज FIR से शुरू हुआ था। शिकायत पीड़िता के पिता ने दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने 17 वर्षीय बेटी के लापता होने की जानकारी दी और दो व्यक्तियों, अंकित और पारस, पर अपहरण का शक जताया।
जनवरी 2024 में लड़की राजस्थान के गंगानगर में अंकित (याचिकाकर्ताओं में से एक) के साथ बरामद हुई। मेडिकल रिपोर्ट में गर्भधारण की पुष्टि हुई और FIR में यौन शोषण, बाल विवाह और अपहरण की धाराएँ जोड़ दी गईं।
बाद के बयानों में लड़की ने उलझी हुई पृष्ठभूमि बताई- अंकित के साथ संबंध, परिवार का दबाव और मजबूरी में अखिलेश से हुई शादी, और फिर दोबारा अंकित के पास लौटना। बाद में उसने स्पष्ट किया कि अब वह अखिलेश के साथ पत्नी के रूप में रह रही है और उनका दूसरा बच्चा होने वाला है। महत्वपूर्ण यह रहा कि वह अदालत में पेश हुई और कहा कि वह याचिकाकर्ताओं के खिलाफ केस नहीं चाहती।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीड़िता के रुख के बावजूद अदालत अपने तर्क में सख्त रही। न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि POCSO अधिनियम के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के नाबालिग की सहमति का कोई कानूनी मूल्य नहीं है। कानून नाबालिग के साथ हुए यौन संबंध और उससे गर्भधारण को ‘गंभीर घोर यौन शोषण’ मानता है, जिसकी सजा बेहद कठोर है।
आदेश में कहा गया- “बाद में हुआ विवाह या साथ रहना अपराध को समाप्त नहीं करता। समझौता किसी यौन अपराध से बाहर निकलने का पासपोर्ट नहीं हो सकता।”
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, बाल विवाह को अपराध मानता है, चाहे विवाह की वर्तमान स्थिति कुछ भी हो। समझौते के आधार पर FIR रद्द करना, अदालत के मुताबिक, संसद द्वारा अपराध घोषित किए गए कृत्य को वैध ठहराने जैसा होगा।
निर्णय
अंततः अदालत ने FIR और चल रही कार्यवाही को रद्द करने से मना कर दिया। न्यायमूर्ति नरूला ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस प्रकार के अपराध निजी विवाद नहीं हैं जिन्हें पक्षकारों के बीच समझौते से खत्म किया जा सके।
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अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में पूर्ण मुकदमे की आवश्यकता है, जहाँ साक्ष्य का विस्तार से परीक्षण किया जाएगा, और ट्रायल कोर्ट को स्वतंत्र रूप से कार्यवाही करने का निर्देश दिया गया।
यह आदेश न्यायपालिका के उस कठोर रुख को रेखांकित करता है कि बाल विवाह और यौन अपराध जैसे मामलों में समझौता या बाद का विवाह गंभीर अपराधों को मिटा नहीं सकता।
Case: Akhilesh & Ors. v. State (Govt. of NCT Delhi) & Anr.
CRL.M.C. 5383/2025
Date of Order: 8 September 2025