SARFAESI अधिनियम के तहत उधारकर्ताओं के संरक्षण न्यायालयों द्वारा स्पष्ट किए गए कानूनी प्रावधान

By Shivam Yadav • August 13, 2025

SARFAESI अधिनियम के तहत उधारकर्ताओं के कानूनी अधिकारों के बारे में जानें, जिसमें धारा 13(4) और 14 के तहत की गई कार्रवाइयों को चुनौती देने की समयसीमा शामिल है, जो हाल के उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर आधारित है।

वित्तीय संपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण तथा सुरक्षा हितों के प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (SARFAESI अधिनियम) बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अदालती हस्तक्षेप के बिना देय राशि वसूलने का अधिकार देता है। हालाँकि, उधारकर्ताओं को विशेष परिस्थितियों में इन कार्रवाइयों को चुनौती देने का अधिकार है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक हालिया फैसले ने ऐसी चुनौतियों की समयसीमा और कानूनी आधारों पर प्रकाश डाला है।

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मामले की पृष्ठभूमि

विमला कश्यप बनाम भारत संघ के मामले में, याचिकाकर्ताओं ने ऋण वसूली ट्रिब्यूनल (DRT) के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनकी अंतरिम राहत की याचिका को खारिज कर दिया गया था, यह कहते हुए कि उनकी अपील "सीमा अवधि से बाहर" है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उन्हें कार्यवाही की जानकारी तब हुई जब उनकी संपत्ति पर एक नोटिस लगाया गया, और उन्होंने उस तिथि से सीमा अवधि के भीतर ही अपील दायर की थी।

मुख्य सवाल यह था कि क्या SARFAESI अधिनियम की धारा 17 के तहत अपील दायर करने की सीमा अवधि धारा 13(4) के नोटिस की तिथि से शुरू होती है या उधारकर्ता को कार्यवाही की वास्तविक जानकारी (जैसे धारा 14 के तहत नोटिस जारी होना) मिलने की तिथि से।

न्यायालय का विश्लेषण और फैसला

उच्च न्यायालय ने कानूनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया:

  1. मार्डिया केमिकल्स लिमिटेड बनाम भारत संघ (2004):
    सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि उधारकर्ता केवल धारा 13(4) के तहत कार्रवाई होने के बाद ही DRT के पास जा सकते हैं। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि अपील के लिए 75% राशि जमा करने की आवश्यकता असंवैधानिक है, जिससे उधारकर्ताओं के लिए न्याय प्राप्त करना आसान हो गया।"धारा 17 के तहत अपील सुनने से पहले 75% राशि जमा करने की आवश्यकता दमनकारी और मनमानी है।"
  2. हिंडन फोर्ज प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2019):
    सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि उधारकर्ता का चुनौती देने का अधिकार नियम 8(1) और 8(2) के तहत कब्जे का नोटिस जारी होते ही शुरू हो जाता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उधारकर्ता को भौतिक कब्जा या नीलामी का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।
  3. कनैयालाल लालचंद सचदेव बनाम महाराष्ट्र राज्य (2011):
    सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि धारा 14 के तहत की गई कार्रवाइयाँ धारा 13(4) के उपायों का ही विस्तार हैं, जो उधारकर्ताओं को कार्यवाही को चुनौती देने का एक और अवसर प्रदान करती हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने DRT के आदेश को रद्द करते हुए कहा:

  • सीमा अवधि की गणना उस तिथि से की जानी चाहिए जब उधारकर्ता को कार्रवाई की जानकारी होती है, न कि केवल धारा 13(4) के नोटिस की तिथि से।
  • DRT ने अपील को समय-सीमा से बाहर बताते हुए खारिज करने के साथ-साथ मामले की तथ्यात्मक जाँच करने में गलती की।
  • धारा 13(4) और 14 के तहत की गई कार्रवाइयाँ एक निरंतर कारण (cause of action) का हिस्सा हैं, जिससे उधारकर्ता किसी भी बाद के उपायों को चुनौती दे सकते हैं।

न्यायालय ने मामले को DRT के पास पुनर्विचार के लिए वापस भेजा और अंतरिम याचिका का निपटारा होने तक संपत्ति के वर्तमान स्थिति को बनाए रखने का निर्देश दिया।

केस का शीर्षक: विमला कश्यप एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य

केस संख्या: अनुच्छेद 227 संख्या 3953/2025 के अंतर्गत मामले

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