शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट, शिमला ने एक अहम फैसला सुनाते हुए दो भाई-बहनों ऋषिता और सुचेत कपूर की भरण-पोषण राशि बढ़ाने की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। अदालत ने माना कि बेटी को 18 साल की उम्र पूरी होने के बाद कानूनी रूप से भरण-पोषण का अधिकार नहीं है, लेकिन बेटे को नाबालिग रहते हुए बढ़ी हुई राशि देने से गलत तरीके से वंचित कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति सुशील कुक्रेजा की खंडपीठ ने 12 सितंबर 2025 को यह फैसला सुनाया और मंडी जिले के सरकाघाट स्थित फैमिली कोर्ट के आदेश को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया।
पृष्ठभूमि
ऋषिता (जन्म अगस्त 1998) फिलहाल पालमपुर में पीएचडी कर रही हैं, जबकि उनका छोटा भाई सुचेत (जन्म मार्च 2002) अमृतसर में बी.टेक की पढ़ाई कर रहा है। दोनों को 2012 में प्रति माह ₹2,000-₹2,000 भरण-पोषण राशि दी गई थी, जिसे 2017 में बढ़ाकर ₹4,000 कर दिया गया।
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2018 में दोनों ने अपनी मां नीलम कुमारी के साथ मिलकर बढ़ती शैक्षणिक खर्चों और महंगाई का हवाला देते हुए धारा 127 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत भरण-पोषण राशि बढ़ाने की मांग की। हालांकि फैमिली कोर्ट ने केवल उनकी मां की राशि ₹8,000 कर दी और भाई-बहनों की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि वे वयस्क हो चुके हैं।
अदालत की टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (अब नई BNSS की धारा 144), हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 26 और हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20 का बारीकी से अध्ययन किया।
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पीठ ने कहा,
"कानून साफ है, पिता अपने बच्चों का भरण-पोषण तब तक करने को बाध्य है जब तक वे वयस्क न हो जाएं, सिवाय इसके कि बच्चा किसी शारीरिक या मानसिक अक्षमता के कारण कमाने में असमर्थ हो।"
अदालत ने नोट किया कि जुलाई 2018 में जब आवेदन दायर हुआ तब ऋषिता पहले ही 18 साल की हो चुकी थीं, जबकि सुचेत उस समय नाबालिग थे और मार्च 2020 में ही वयस्क हुए।
"फैमिली कोर्ट ने गलती की कि उसने सुचेत का दावा पूरी तरह खारिज कर दिया, जबकि उसे वयस्क होने तक बढ़ी हुई राशि मिलनी चाहिए थी," न्यायाधीशों ने कहा।
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फैसला
इसके अनुसार, अदालत ने आदेश दिया कि सुचेत को 2 जुलाई 2018 से 17 मार्च 2020 तक प्रति माह ₹8,000 की बढ़ी हुई भरण-पोषण राशि दी जाए। यदि कोई बकाया है तो विजय कपूर इसे 15 अक्टूबर 2025 तक अदा करें।
वहीं अदालत ने ऋषिता की याचिका खारिज कर दी और कहा कि धारा 125 CrPC वयस्क बच्चों को भरण-पोषण का अधिकार नहीं देती जब तक कि वे शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम न हों।
अदालत ने मानवीय दृष्टिकोण से यह भी जोड़ा कि यदि पिता ने बच्चों को 18 साल के बाद भी स्वेच्छा से राशि दी है, तो वह उसे वापस नहीं ले सकते।
आदेश में कहा गया,
"पिता का कानूनी दायित्व भले न हो, लेकिन नैतिक कर्तव्य है कि बच्चों की पढ़ाई पूरी होने तक उनका सहारा बने।"
इस तरह हाईकोर्ट ने भाई-बहनों की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार की और सभी लंबित आवेदन निपटा दिए।
केस का शीर्षक: ऋषिता कपूर एवं अन्य बनाम विजय कपूर एवं अन्य
केस संख्या: Cr. Revision (FC) No. 49 of 2024