केरल हाई कोर्ट ने बुधवार (3 सितंबर 2025) को 16 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता की 28 हफ्ते की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी। अदालत ने साथ ही यह भी कहा कि अगर शिशु जीवित पैदा होता है तो राज्य सरकार नवजात की देखभाल की जिम्मेदारी उठाएगी। न्यायमूर्ति ईश्वरन एस. ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट और प्रजनन अधिकारों से जुड़ी पूर्व कानूनी मिसालों पर विचार करने के बाद आदेश सुनाया।
पृष्ठभूमि
यह मामला लड़की की मां ने दायर किया था, जिन्होंने अपनी बेटी की गर्भावस्था को तुरंत समाप्त करने की अनुमति मांगी थी। नाबालिग के साथ कथित दुष्कर्म के बाद वह गर्भवती हुई थी। इस संबंध में एदाथवा पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (बीएनएस) और पोक्सो एक्ट की धाराएं लगाई गई हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अपनी बेटी को गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन और सम्मान के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। कानूनी सहायता के माध्यम से पेश हुए उसके वकील ने पूर्व के फैसलों का भरपूर हवाला दिया, जिनमें XYZ बनाम गुजरात राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला और X बनाम भारत संघ मामले में केरल उच्च न्यायालय का पूर्व का फैसला शामिल है। दोनों फैसलों में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि गर्भपात सहित प्रजनन संबंधी विकल्प, एक महिला की गरिमा का अभिन्न अंग हैं।
अदालत की टिप्पणियाँ
अदालत ने पहले ही अलाप्पुझा के टीडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक को निर्देश दिया था कि नाबालिग की स्थिति का आकलन करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ सहित एक मेडिकल बोर्ड बनाया जाए। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि गर्भ 28 हफ्ते से अधिक का है, भ्रूण में सामान्य हृदयगति है और अनुमानित वजन 1.2 किलोग्राम है। डॉक्टरों ने कहा कि भ्रूण के जीवित रहने की संभावना है, लेकिन समय से पहले जन्म होने पर श्वसन संबंधी समस्या और मस्तिष्क रक्तस्राव जैसी जटिलताएं हो सकती हैं।
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न्यायमूर्ति ईश्वरन एस. ने इन चिकित्सकीय चिंताओं को स्वीकार किया लेकिन स्थापित कानूनी सिद्धांतों की ओर इशारा किया। उन्होंने केरल हाई कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा,
"अगर गर्भसमापन के बाद शिशु जीवित पैदा होता है तो चिकित्सा विशेषज्ञ यह सुनिश्चित करेंगे कि उसकी जान बचाने के लिए आवश्यक सुविधाएं दी जाएं।"
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि
"हर महिला को प्रजनन संबंधी निर्णय लेने का अधिकार बिना राज्य के अनुचित हस्तक्षेप के होना चाहिए और यही उसकी गरिमा का मूल है।"
अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर शिशु जीवित पैदा होता है तो चूंकि नाबालिग और उसका परिवार उसकी परवरिश की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए राज्य को पूर्ण जिम्मेदारी लेनी होगी।
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फैसला
याचिका को मंजूरी देते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह तुरंत विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम के जरिए गर्भसमापन की व्यवस्था करे। अदालत ने आदेश दिया कि अगर शिशु जीवित पैदा होता है तो सरकार पुनर्जीवन और नवजात देखभाल उपलब्ध कराए। किसी भी चिकित्सकीय जटिलता की स्थिति में भी राज्य को निरंतर उपचार देना होगा।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अगर भ्रूण जीवित न रहे तो अस्पताल डीएनए और फोरेंसिक जांच के लिए उसके रक्त और ऊतक के नमूने सुरक्षित रखे, क्योंकि मामला अभी अपराध जांच के अधीन है।
इस प्रकार अदालत ने याचिकाकर्ता की मांग, नाबालिग के संवैधानिक अधिकार और राज्य की जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाया।
केस का शीर्षक: Xxxxxx बनाम केरल राज्य
केस संख्या: WP(C) संख्या 32917/2025