सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हिमालयी राज्यों में लगातार हो रही भयंकर बाढ़ और भूस्खलनों पर गहरी चिंता जताई और पर्यावरणीय असंतुलन की ओर संकेत किया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI) की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन भी शामिल थे, ने हिमाचल प्रदेश की बाढ़ग्रस्त नदियों में बहते लकड़ी के भारी ढेरों पर गंभीर टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि यह बड़े पैमाने पर अवैध पेड़ कटाई का संकेत है।
पृष्ठभूमि
यह सुनवाई पर्यावरण कार्यकर्ता अनामिका राणा की जनहित याचिका पर हुई, जिसमें उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों की रक्षा के लिए तत्काल दिशा-निर्देश और जांच की मांग की थी। उनकी याचिका में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में बार-बार हो रही आपदाओं का जिक्र किया गया था-फ्लैश फ्लड्स, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं जिनमें कई जानें गईं और बड़ी तबाही मची।
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राणा, जिनकी ओर से अधिवक्ता शुभम उपाध्याय पेश हुए, ने विशेषज्ञों की एक विशेष जांच टीम (SIT) बनाने की भी मांग की थी, जो आपदाओं के कारणों का आकलन कर सके और संवेदनशील क्षेत्रों को बचाने की योजना बना सके।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने बेहद सख्त लहजे में कहा, “हमने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में अभूतपूर्व भूस्खलन और बाढ़ देखे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स से पता चला कि बाढ़ में भारी मात्रा में लकड़ी बह रही थी। पहली नजर में लगता है कि अवैध रूप से पेड़ों की कटाई की गई है।”
मुख्य न्यायाधीश गवई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “एसजी, कृपया इस पर गौर कीजिए। यह गंभीर मुद्दा प्रतीत होता है। बड़ी संख्या में लकड़ी के लठ्ठे बहते हुए देखे गए हैं… विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन ज़रूरी है।”
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मेहता ने आश्वस्त किया कि केंद्र इस मसले को गंभीरता से ले रहा है। उन्होंने कहा, “हमने प्रकृति के साथ इतनी छेड़छाड़ की है कि अब प्रकृति जवाब दे रही है। मैं पर्यावरण मंत्रालय के सचिव से बात करूंगा और वे राज्यों के मुख्य सचिवों से चर्चा करेंगे। इसे अनुमति नहीं दी जा सकती।”
पीठ ने बाढ़ग्रस्त इलाकों में सुरंगों में फंसे लोगों की खबरों पर भी चिंता जताई। इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “हां, हमने इस मुद्दे की गंभीरता को नोट किया है।”
फैसला
अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए केंद्र सरकार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, पर्यावरण मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर की सरकारों से जवाब मांगा है।
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अब दो हफ्ते बाद इस मामले की सुनवाई होगी, जब तक कि सभी जवाब दाखिल नहीं हो जाते। सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप ऐसे समय आया है जब जलवायु संकट से जुड़ी आपदाएँ बढ़ रही हैं और यह साफ हो गया है कि हिमालयी क्षेत्र का पर्यावरणीय अस्तित्व अब अदालत की प्राथमिकता में है।
मामले का शीर्षक: अनामिका राणा बनाम भारत संघ
याचिकाकर्ता: पर्यावरण कार्यकर्ता अनामिका राणा (वकील शुभम उपाध्याय के माध्यम से)
प्रतिवादी: केंद्र सरकार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, पर्यावरण मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, NHAI, और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकारें।