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सुप्रीम कोर्ट ने त्रिवेणी इंजीनियरिंग पर NGT का ₹18 करोड़ का जुर्माना रद्द किया

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने त्रिवेणी इंजीनियरिंग पर एनजीटी द्वारा लगाए गए ₹18 करोड़ के जुर्माने को रद्द किया, प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन और गलत प्रक्रिया का हवाला दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने त्रिवेणी इंजीनियरिंग पर NGT का ₹18 करोड़ का जुर्माना रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के दो आदेशों को रद्द कर दिया है, जिनमें एम/एस त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड पर पर्यावरणीय मुआवजे के तौर पर ₹18 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था। यह दंड उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर स्थित कंपनी की चीनी मिल में कथित उल्लंघनों को लेकर लगाया गया था।

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मामला

त्रिवेणी इंजीनियरिंग, जो उत्तर प्रदेश में सात चीनी इकाइयों का संचालन करती है, पर आरोप था कि उसकी खतौली स्थित चीनी मिल से बिना उपचारित अपशिष्ट छोड़ा जा रहा था और इससे आसपास के भूजल में प्रदूषण फैल रहा था। 2021 में एनजीटी में दायर एक शिकायत के बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) और मुज़फ्फरनगर के जिलाधिकारी की एक संयुक्त समिति गठित की गई।

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निरीक्षण रिपोर्ट में कई खामियां बताई गईं, जैसे:

  • बिना उपचारित अपशिष्ट का अवैध निस्तारण तालाबों में।
  • नमूनों में ताजे पानी की मिलावट कर असली गुणवत्ता छिपाना।
  • मिल और बॉयलर हाउस में फ्लो मीटर का न होना।
  • तेल, ग्रीस, बॉयलर राख और ईटीपी (ETP) लॉगबुक का रिकॉर्ड न होना।

इन निष्कर्षों के आधार पर एनजीटी ने 15 फरवरी 2022 को उल्लंघन मानते हुए मुआवजे का आकलन करने का आदेश दिया। इसके बाद 16 सितंबर 2022 को एनजीटी ने त्रिवेणी इंजीनियरिंग को ₹18 करोड़ (कंपनी के वार्षिक टर्नओवर का 2%) जमा करने का आदेश दिया, ताकि पर्यावरण की बहाली की जा सके।

अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी की कार्यवाही में गंभीर खामियां पाई। जस्टिस उज्जल भुइयां ने कहा कि त्रिवेणी इंजीनियरिंग को मूल कार्यवाही में पक्षकार ही नहीं बनाया गया, जबकि आदेश सीधे उसी के खिलाफ थे।

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अदालत ने कहा:

“प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है। बिना सुनवाई का अवसर दिए अपीलकर्ता पर इतना बड़ा मुआवजा थोपना उचित नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी पाया कि संयुक्त समिति ने जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया। जैसे, नमूने लेने से पहले नोटिस देना और कंपनी के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में नमूनों को सील करना।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एनजीटी ने “संयुक्त समिति की रिपोर्ट को बिना किसी परीक्षण के स्वीकार कर लिया” और कंपनी की आपत्तियां सुने बिना ही मुआवजा ठोक दिया।

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सुप्रीम कोर्ट ने 15.02.2022 और 16.09.2022 को पारित दोनों एनजीटी आदेशों को रद्द कर दिया। इसके साथ ही त्रिवेणी इंजीनियरिंग को ₹18 करोड़ की जिम्मेदारी से राहत मिल गई।

मामला: मेसर्स त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य।

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