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राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस पर लगाई फटकार, वारंट की अनदेखी पर डीजीपी से स्पष्टीकरण मांगा

Shivam Y.

कुलदीप सिंह बनाम राजस्थान राज्य - राजस्थान उच्च न्यायालय ने सम्मन और गिरफ्तारी वारंट की अनदेखी करने के लिए पुलिस की आलोचना की, डीजीपी को चूक की व्याख्या करने और जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया।

राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस पर लगाई फटकार, वारंट की अनदेखी पर डीजीपी से स्पष्टीकरण मांगा

राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर ने कुलदीप सिंह द्वारा दायर एक जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान पुलिस अधिकारियों को खुलेआम कोर्ट के समन और यहां तक कि गिरफ्तारी वारंट की अनदेखी करने पर कड़ी फटकार लगाई। न्यायमूर्ति फर्जंद अली ने 28 अगस्त 2025 को कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि कानून लागू करने वाले ही अगर आदेश न मानें, तो न्याय व्यवस्था पर जनता का भरोसा डगमगा जाता है।

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पृष्ठभूमि

सुनवाई के दौरान राज्य के अधिवक्ता ने स्वीकार किया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा बार-बार प्रयासों के बावजूद पुलिस गवाह, खासकर वे अधिकारी जिन्होंने बरामदगी की थी, कोर्ट में पेश नहीं हुए। यहां तक कि उनके खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट भी लागू नहीं किए गए। इससे ट्रायल कोर्ट बेबस हो गया और मुकदमा आगे नहीं बढ़ सका।

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न्यायाधीश ने याद दिलाया कि 2015 में गणेश राम बनाम राज्य बनाम राजस्थान मामले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि हर जिले में एक नोडल अधिकारी (अधिमानतः सर्किल इंस्पेक्टर) नियुक्त होना चाहिए जो पुलिस गवाहों को अदालत में उपस्थित कराने के लिए जिम्मेदार होगा। समन सीधे ऐसे अधिकारी को भेजे जा सकते हैं और किसी भी लापरवाही की जिम्मेदारी उसी पर होगी।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति अली ने बिना किसी लागलपेट के स्थिति का वर्णन किया।

"कानून के शासन से चलने वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए इससे अधिक शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता," पीठ ने कहा और आश्चर्य जताया कि एक सेवा में कार्यरत पुलिस अधिकारी, गिरफ्तारी वारंट के बावजूद, कहीं और ड्यूटी निभाता रहा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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अदालत ने नोट किया कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ वारंट भी लागू न होना खतरनाक मिसाल है और जनता के भरोसे को कमजोर करता है। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि गणेश राम में दिए गए निर्देशों का सही पालन अब तक नहीं दिख रहा।

आदेश में पुराने निर्देश भी उद्धृत किए गए:

"संबंधित ट्रायल कोर्ट सीधे नोडल अधिकारी को समन भेजने के लिए अधिकृत होगा और वह अधिकारी गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होगा। यदि अनुपालन नहीं हुआ तो नोडल अधिकारी व्यक्तिगत रूप से परिणाम भुगतने के लिए जिम्मेदार होगा।"

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निर्णय

इन चूकों को देखते हुए, हाईकोर्ट ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से स्पष्टीकरण मांगा है। डीजीपी को शपथपत्र दाखिल कर यह स्पष्ट करना होगा:

  • क्या 2015 के गणेश राम दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन हुआ है।
  • संबंधित जिले में उस समय नोडल अधिकारी कौन था।
  • ट्रायल कोर्ट के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए।
  • जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।

अदालत ने आदेश दिया कि अगली सुनवाई से पहले शपथपत्र दाखिल किया जाए और मामले को 12 सितंबर 2025 के लिए सूचीबद्ध किया। न्यायमूर्ति अली ने राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता को यह आदेश तुरंत डीजीपी तक पहुंचाने के लिए भी कहा।

केस का शीर्षक: कुलदीप सिंह बनाम राजस्थान राज्य

केस संख्या: एस.बी. आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या 10058/2025

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