दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act)) के तहत आए एक असामान्य अनुरोध पर विचार किया। मामला इस बात पर केंद्रित था कि क्या दिल्ली विश्वविद्यालय को 1978 की बैचलर ऑफ आर्ट्स परीक्षा में शामिल छात्रों का रिकॉर्ड उपलब्ध कराने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें विश्वविद्यालय को छात्रों के रोल नंबर, नाम, पिता का नाम, अंक और 1978 की बीए परीक्षा के नतीजे उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था। CIC ने माना कि ऐसे विवरण सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा हैं और इन्हें गोपनीय नहीं माना जा सकता।
अदालत की कार्यवाही:
इससे पहले, केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (CPIO) ने आरटीआई आवेदन को अधिनियम की धारा 8(1)(j) का हवाला देकर खारिज कर दिया था, जो व्यक्तिगत जानकारी की रक्षा करता है, जब तक कि उसके प्रकटीकरण में कोई व्यापक जनहित न हो। प्रथम अपीलीय प्राधिकरण ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था। हालांकि, सीआईसी ने असहमति जताते हुए कहा:
“एक बार जब छात्र परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है और डिग्री प्राप्त कर लेता है, तो ऐसी योग्यता का विवरण निजी या तृतीय-पक्ष जानकारी नहीं माना जा सकता।”
CIC ने चुनाव कानून का भी हवाला दिया और कहा कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता सार्वजनिक जांच के लिए अनिवार्य रूप से उपलब्ध होती है।
हाई कोर्ट ने याचिका की सुनवाई करते हुए इस बात पर जोर दिया कि सूचना के अधिकार और व्यक्तिगत गोपनीयता के बीच संतुलन आवश्यक है। यह फैसला इस बहस को और गहरा कर रहा है कि आरटीआई अधिनियम किस हद तक दशकों पुराने शैक्षणिक रिकॉर्ड पर लागू हो सकता है
जैसा कि अदालत ने कहा:
“शैक्षणिक योग्यता का प्रकटीकरण सामान्यतः व्यक्ति की गोपनीयता को प्रभावित नहीं करता, लेकिन अंकों और व्यक्तिगत विवरण का सामूहिक प्रकटीकरण बड़े सवाल खड़े कर सकता है।”
यह मामला भारतीय कानून में बढ़ते तनाव को रेखांकित करता है-एक तरफ पारदर्शिता की मांग और दूसरी तरफ डेटा गोपनीयता की आवश्यकता।
केस शीर्षक: दिल्ली विश्वविद्यालय बनाम नीरज एवं अन्य
केस संख्या: W.P.(C) 600/2017 & CM APPLs.6048/2018, 7942/2018, 18395/2018, 34218/2023