2 सितंबर: मद्रास उच्च न्यायालय ने चेन्नई में रिपन बिल्डिंग के पास सफाई कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन के दौरान वकीलों और कानून के छात्रों को कथित रूप से अवैध रूप से हिरासत में लेने और उन पर हमला करने से जुड़े एक संवेदनशील मामले में हस्तक्षेप किया है। याचिकाकर्ता एस. विजय द्वारा एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (HCP संख्या 1599/2025) दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि 13 अगस्त 2025 को पुलिस ने 13 व्यक्तियों को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन के ज़ोन-5 और ज़ोन-6 के सफाई कर्मचारी 1 अगस्त से प्रदर्शन कर रहे थे। 13 अगस्त को हाई कोर्ट की प्रथम पीठ ने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार है, लेकिन फुटपाथ और सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध नहीं किया जा सकता। उसी रात कई वकील और छात्र, जो प्रदर्शनकारियों की मदद करने पहुंचे थे, कथित तौर पर पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिए गए।
14 अगस्त को जस्टिस एम.एस. रमेश और जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायणन की खंडपीठ ने छह बंदियों की रिहाई का आदेश दिया और माना कि गिरफ्तारी प्रथम दृष्टया अवैध लग रही है।
आदेश में स्पष्ट कहा गया:
"प्रतिवादियों को तुरंत बंदियों को रिहा करने का निर्देश दिया जाता है... इस शर्त पर कि वे अगले आदेश तक प्रेस या सोशल मीडिया पर कोई बयान नहीं देंगे।"
राज्य की ओर से तर्क दिया गया कि कुछ बंदियों ने महिला कांस्टेबल पर हमला किया और बसों को नुकसान पहुँचाया। वीडियो क्लिप और मेडिकल रिकॉर्ड भी अदालत में रखे गए। लेकिन कोर्ट ने पाया कि फुटेज केवल मामूली नुकसान दिखाता है और गिरफ्तारी, तोड़फोड़ के कथित घटनाक्रम से पहले हुई लगती है।
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दो बंदियों, एडवोकेट आरती और लॉ ग्रेजुएट वलारमथी ने आरोप लगाया कि उन्हें हिरासत में बुरी तरह पीटा गया, जिससे एक बेहोश हो गई और उसे तीन दिन तक आंतरिक रक्तस्राव के कारण सरकारी अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। उनके शपथपत्र अदालत में पेश किए गए, जो पुलिस के दावों का खंडन करते हैं।
जजों ने टिप्पणी की:
"पुलिस को कानून तोड़ने वालों को गिरफ्तार करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें गिरफ्तार व्यक्तियों पर हमला करने का कोई अधिकार नहीं है।"
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गंभीर आरोपों को देखते हुए, खंडपीठ ने सेवानिवृत्त जस्टिस वी. पार्थिबन को वन-मैन कमीशन ऑफ इंक्वायरी नियुक्त किया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि बंदियों को गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने पीटा या नहीं। तमिलनाडु विधिक सेवा प्राधिकरण को जांच की व्यवस्था करने को कहा गया है और राज्य सरकार को आयोग को प्रारंभिक मानदेय ₹2 लाख देने का निर्देश दिया गया है।
मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर 2025 को होगी और तब तक पुलिस को अपना जवाब दाखिल करना होगा।
केस का शीर्षक: एस. विजय बनाम पुलिस आयुक्त एवं अन्य
केस संख्या: उच्च न्यायालय याचिका संख्या 1599/2025