रांची, 13 जून: झारखंड हाईकोर्ट, रांची ने दिवंगत सीताराम लोहिया की अंतिम वसीयत से जुड़ी प्रोबेट याचिका को मंजूरी दे दी है और बीरेन पोद्दार को संपत्ति का कार्यपालक (एक्सीक्यूटर) घोषित किया है। यह आदेश प्रोबेट केस संख्या 01/2012 में न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी ने पारित किया।
मामला 7 अप्रैल 2008 की वसीयत से संबंधित था, जिसके जरिए लोहिया ने अपनी संपत्तियों का बंटवारा किया था। ये संपत्तियां रांची, नई दिल्ली और राजस्थान में स्थित थीं। लोहिया का निधन 21 अप्रैल 2008 को हुआ था। शुरू में बिनोद पोद्दार और बीरेन पोद्दार को कार्यपालक बनाया गया था, लेकिन बिनोद पोद्दार के निधन के बाद बीरेन पोद्दार अकेले कार्यपालक बने।
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कार्रवाई के दौरान अदालत ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत सभी कानूनी औपचारिकताओं का पालन सुनिश्चित किया। अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित किए गए और रांची, नई दिल्ली व सीकर (राजस्थान) में प्रमुख सार्वजनिक स्थलों पर नोटिस चस्पा किए गए, ताकि इच्छुक पक्ष अपनी आपत्ति दर्ज करा सकें। वसीयत को गवाहों और दस्तावेजी साक्ष्यों के माध्यम से प्रमाणित किया गया, जिसमें मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र और उनके अंगूठे के निशान शामिल थे।
वसीयत में प्रमुख संपत्तियां बांटी गईं, जिनमें नई दिल्ली का एक फ्लैट बहू अल्का लोहिया को, रांची के तातीसिल्वाई की जमीन समीर लोहिया को, रांची के रेडियम कोर्ट का फ्लैट रिंकू लोहिया को और राजस्थान के लक्ष्मणगढ़ की पुश्तैनी हवेली संजय लोहिया को दी गई।
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महत्वपूर्ण बात यह रही कि किसी भी कानूनी वारिस ने वसीयत की प्रामाणिकता पर आपत्ति नहीं की। सुषील, शेखर और संजय लोहिया सहित बेटियों - रेनु राजगढ़िया, रेखा गोयंका, उमा कानोरिया और अनीता घूवालेवाला - ने शपथपत्र के जरिए बीरेन पोद्दार के पक्ष में प्रोबेट देने की सहमति जताई।
निर्णय सुनाते हुए अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के ईश्वरदेव नारायण सिंह बनाम कमता देवी (1953) मामले का हवाला दिया। उसमें स्पष्ट किया गया था कि प्रोबेट कोर्ट का काम केवल यह देखना है कि वसीयत विधि अनुसार सही तरीके से बनाई गई है या नहीं और क्या वसीयतकर्ता स्वस्थ दिमाग से निर्णय लेने की स्थिति में था।
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न्यायमूर्ति द्विवेदी ने टिप्पणी की:
"प्रोबेट अदालत संपत्ति के स्वामित्व या अस्तित्व का निर्णय नहीं करती। उसका काम केवल वसीयत की विधिकता और सही निष्पादन की जांच करना है।"
सभी वारिसों की सहमति और निर्विवाद साक्ष्यों को देखते हुए अदालत ने प्रोबेट देने में कोई बाधा नहीं पाया। अंतिम आदेश में न्यायमूर्ति द्विवेदी ने कहा कि 7 अप्रैल 2008 की वसीयत को प्रोबेट कर दिया जाता है और कार्यपालक बीरेन पोद्दार वसीयत की शर्तों के अनुसार कार्रवाई करेंगे।
कार्यालय को कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं।
केस का शीर्षक: बीरेन पोद्दार बनाम हिंदपीढ़ी, रांची के आम लोग
केस संख्या: प्रोबेट केस संख्या 01, 2012