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गुजरात हाईकोर्ट ने वडोदरा में बूटलेगर की रोकथाम हिरासत रद्द की

Vivek G.

गुजरात हाईकोर्ट ने वडोदरा में बूटलेगर की रोकथाम हिरासत रद्द की, कहा कि प्रतिबंध कानून के मामले लोक व्यवस्था को प्रभावित नहीं करते।

गुजरात हाईकोर्ट ने वडोदरा में बूटलेगर की रोकथाम हिरासत रद्द की

गुजरात हाईकोर्ट, अहमदाबाद ने देवेन्द्र राजूराम बालई (मेघवाल) के खिलाफ जारी रोकथाम हिरासत आदेश को रद्द कर दिया है। उन्हें गुजरात रोकथाम एंटी-सोशल एक्टिविटीज़ एक्ट, 1985 के तहत बूटलेगर घोषित कर हिरासत में लिया गया था।

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यह आदेश 08 अगस्त 2025 को वडोदरा शहर के पुलिस आयुक्त द्वारा जारी किया गया था। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि यह कानून के अनुसार उचित नहीं है।

याचिकाकर्ता के वकील ओ. आई. पठान ने दलील दी कि हिरासत का आधार “लोक व्यवस्था (public order)” से नहीं जुड़ा बल्कि केवल “कानून व्यवस्था (law and order)” से संबंधित है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता पर दर्ज प्रतिबंध कानून (Prohibition Act) के मामले केवल स्थानीय स्तर के हैं और इनसे आम जनजीवन या समाज की शांति प्रभावित नहीं होती।

वहीं, राज्य की ओर से मिस वृंदा शाह, APP ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता आदतन अपराधी है और उसकी गतिविधियाँ समाज पर सीधा असर डालती हैं। इसलिए वडोदरा शहर में लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए हिरासत जरूरी थी।

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न्यायमूर्ति इलेश जे. वोरा और न्यायमूर्ति पी. एम. रावल की खंडपीठ ने सभी दस्तावेज़ और दलीलों की जांच की। अदालत ने पाया कि हिरासत आदेश, प्रतिबंध कानून की धाराओं 65(E), 81, 83, 98(2), 108 और 116B के तहत दर्ज मामलों के आधार पर जारी किया गया था।

लेकिन अदालत ने कहा कि सिर्फ प्रतिबंध मामलों में शामिल होने से रोकथाम हिरासत का आधार नहीं बन सकता जब तक कि वह लोक व्यवस्था को प्रभावित न करे। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पियूष कांतिलाल मेहता बनाम पुलिस आयुक्त, अहमदाबाद और पुष्कर मुखर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य का हवाला देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि “कानून व्यवस्था” और “लोक व्यवस्था” में अंतर है।

“सिर्फ कानून व्यवस्था का उल्लंघन रोकथाम हिरासत के लिए पर्याप्त नहीं है। तभी कार्यवाही हो सकती है जब गतिविधियाँ पूरे समुदाय या जनहित को प्रभावित करें और लोक व्यवस्था बिगाड़ें।” – गुजरात हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा

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अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता भले ही अपराधों के लिए दंडनीय हो, लेकिन उसकी गतिविधियों से जनता में असुरक्षा, दहशत या आतंक की भावना उत्पन्न नहीं हुई।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि हिरासत के लिए पर्याप्त आधार मौजूद नहीं था और पुलिस आयुक्त की “संतुष्टि” कानूनी और वैध नहीं थी।

“रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री यह साबित नहीं करती कि याचिकाकर्ता की गतिविधियाँ लोक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं या प्रभावित करने की संभावना रखती हैं।” – गुजरात हाईकोर्ट

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इसी आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए 08.08.2025 का हिरासत आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाए, यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो।

केस का शीर्षक: मेगावेलिस बलराम बलाई (मेघवाल) नारायणलाल ‍आदिवासीलालाई बनाम गुजरात एवं राज्य अन्य।

मामले का प्रकार: विशेष आपराधिक आवेदन संख्या 11493/2025

ऑर्डर की तारीख: 28 अगस्त 2025

प्रतिवादी: गुजरात राज्य एवं अन्य

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