सुप्रीम कोर्ट ने नीलम कुमारी की सजा को रद्द कर दिया है, जिन्हें अपने शिशु पुत्र की गला दबाकर हत्या करने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी का दोष संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।
नीलम कुमारी को 2007 में हिमाचल प्रदेश की निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था और 2009 में हाई कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा था। यह मामला मुख्य रूप से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और कथित अतिरिक्त-न्यायिक इकबालिया बयानों पर आधारित था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे इकबालिया बयान "कमजोर साक्ष्य" माने जाते हैं और इन्हें मज़बूत corroboration की आवश्यकता होती है।
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न्यायालय ने चिकित्सीय रिपोर्ट का विश्लेषण करते हुए कहा कि बच्चे की गर्दन पर गला घोंटने के निशान मिले थे, लेकिन मृत्यु के समय को लेकर असमंजस बना रहा। पीठ ने टिप्पणी की कि संदिग्ध गला घोंटने और मृत्यु के बीच लगभग दो घंटे का अंतर था और फिर पोस्टमार्टम से पहले आठ घंटे और बीते। "यह समयांतराल गंभीर अनिश्चितता पैदा करता है," अदालत ने कहा और इस अवधि में अन्य लोगों की बच्चे तक पहुंच की संभावना जताई।
हत्या में इस्तेमाल कथित हरे दुपट्टे की बरामदगी पर भी सवाल उठाए गए। यह दुपट्टा कभी पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टर को नहीं दिखाया गया, जिससे साक्ष्यों की श्रृंखला में "मूलभूत असंगति" रह गई। इसके अलावा, दुपट्टे पर मिले फॉरेंसिक निशान मृत बच्चे से जोड़ने में असफल रहे।
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अदालत ने नीलम के घटना के बाद के व्यवहार को भी अहम माना। बच्चे की हालत छिपाने के बजाय उसने तुरंत चिकित्सकीय मदद ली। पीठ ने कहा कि ऐसा आचरण "दोषी होने की तुलना में निर्दोषता से अधिक मेल खाता है।"
प्रेरणा (मोटिव) की अनुपस्थिति भी महत्वपूर्ण कारक रही। अभियोजन ने पारिवारिक विवाद को वजह बताया, लेकिन अदालत ने माना कि यह तर्क "तर्कहीन" है और मां की स्वाभाविक प्रवृत्ति के विरुद्ध है।
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष का मामला न तो ठोस इकबालिया बयान पर आधारित था और न ही परिस्थितिजन्य साक्ष्य किसी एक निष्कर्ष की ओर ले जाते हैं। अपील को स्वीकार करते हुए अदालत ने नीलम कुमारी को हत्या के आरोप से बरी कर दिया और उनकी जमानत बॉन्ड से मुक्ति की घोषणा की।
केस का शीर्षक:- नीलम कुमारी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
केस संख्या:- आपराधिक अपील संख्या 582/2013