भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विजय कृष्णस्वामी (उर्फ कृष्णस्वामी विजयकुमार) के खिलाफ 2017–2018 के आकलन वर्ष से संबंधित कथित टैक्स चोरी मामले में चल रहे अभियोजन को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि दंड से छूट देने वाले सेटलमेंट कमीशन के आदेश के बावजूद अभियोजन जारी रखना नियमों का उल्लंघन है और यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
मामला पृष्ठभूमि
यह मामला 24 अप्रैल 2016 को आयकर विभाग द्वारा की गई तलाशी से शुरू हुआ था। इस दौरान अपीलकर्ता के आवास से ₹4.93 करोड़ की अघोषित नकदी जब्त की गई थी। इसके बाद आयकर अधिनियम की धारा 276C(1) के तहत शिकायत दर्ज की गई, जो टैक्स चोरी के जानबूझकर किए गए प्रयासों से संबंधित है।
2018 में कृष्णस्वामी ने मद्रास उच्च न्यायालय में अभियोजन रद्द करने की याचिका दायर की थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। इसके साथ ही, उन्होंने दिसंबर 2018 में सेटलमेंट कमीशन के समक्ष आवेदन किया और अतिरिक्त आय का खुलासा करते हुए छूट मांगी। 26 नवंबर 2019 को सेटलमेंट कमीशन ने उन्हें दंड से छूट दे दी, लेकिन अभियोजन से छूट नहीं दी क्योंकि मामला पहले से ही हाई कोर्ट में लंबित था।
इसके बावजूद, चेन्नई की ट्रायल कोर्ट में अभियोजन जारी रहा।
अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि—
- धारा 245D(4) के तहत सेटलमेंट कमीशन का आदेश धारा 245-I के अनुसार बाध्यकारी और अंतिम है।
- सीबीडीटी के 2008 और 2019 के परिपत्रों के अनुसार, धारा 276C(1) के तहत अभियोजन केवल तभी शुरू किया जा सकता है जब आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) द्वारा दंड की पुष्टि हो।
- चूंकि आकलित अघोषित आय पर कर देयता ₹25 लाख से कम थी, इसलिए अभियोजन बिना विशेष अनुमति के शुरू नहीं हो सकता था।
- दंड से छूट मिलने के बाद अभियोजन जारी रखना “कानूनी प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग” है।
राजस्व विभाग ने कहा कि चूंकि अभियोजन शिकायत सेटलमेंट आवेदन से पहले दर्ज की गई थी, इसलिए अपीलकर्ता को धारा 245H(1) के तहत अभियोजन से छूट नहीं दी जा सकती। विभाग ने यह भी कहा कि अघोषित नकदी को रिटर्न में नहीं दिखाना स्पष्ट रूप से टैक्स चोरी का मामला है।
न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय विष्णोई की पीठ ने आयकर अधिनियम के प्रावधानों, विभागीय परिपत्रों और पूर्व के फैसलों की समीक्षा की।
अदालत ने कहा:
- धारा 276C(1) जानबूझकर टैक्स चोरी के प्रयास को दंडित करती है, लेकिन इसके लिए मन्स रिया (आपराधिक इरादा) साबित करना जरूरी है।
- सीबीडीटी के परिपत्र (2008, अभियोजन मैनुअल 2009 और 2019 का स्पष्टीकरण) स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ITAT द्वारा दंड की पुष्टि के बाद ही अभियोजन हो सकता है। ये परिपत्र अधिकारियों पर बाध्यकारी हैं।
- सेटलमेंट कमीशन ने पाया कि अपीलकर्ता ने सभी तथ्य बताए और कोई भी सामग्री तथ्य नहीं छुपाया, इसलिए उसे दंड से छूट दी गई।
- राजस्व विभाग ने “अपने ही बाध्यकारी परिपत्रों की खुली अवहेलना” करते हुए बिना कानूनी आधार के अभियोजन जारी रखा।
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अदालत ने कहा:
“अपने ही निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना गंभीर चूक है और यह निष्पक्षता, स्थिरता और जवाबदेही के सिद्धांतों को कमजोर करती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने विजय कृष्णस्वामी के खिलाफ अभियोजन को रद्द कर दिया और राजस्व विभाग पर ₹2,00,000 का जुर्माना लगाया, जो अपीलकर्ता को दिया जाएगा।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि आयकर विभाग को सीबीडीटी के परिपत्रों का सख्ती से पालन करना चाहिए और सेटलमेंट कमीशन के आदेशों का सम्मान करना चाहिए। इनके विपरीत अभियोजन चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
मामले का नाम: विजय कृष्णस्वामी @ कृष्णस्वामी विजयकुमार बनाम आयकर उप निदेशक (जांच)
मामले का प्रकार: आपराधिक अपील (विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल) संख्या 3618-3620/2024 से उत्पन्न)
अपीलकर्ता: विजय कृष्णस्वामी @ कृष्णस्वामी विजयकुमार
प्रतिवादी: आयकर उप निदेशक (जांच), चेन्नई