मिर्थुनाज कुमार के भाई रोहित कुमार (उम्र 27 साल) को “गुंडा” घोषित करते हुए थूथुकुडी जिला कलेक्टर ने4 सितंबर 2024 को तमिलनाडु गुंडा एक्ट (अधिनियम 14, 1982) के तहत नजरबंद कर दिया था। पहले भी इस नजरबंदी को H.C.P.(MD) No.1399 of 2024 में चुनौती दी गई थी, लेकिन 29 अप्रैल 2025 को हाईकोर्ट ने वह याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट जाने के बजाय, मिर्थुनाज कुमार ने दोबारा H.C.P.(MD) No.718 of 2025 दाखिल की।
याचिकाकर्ता के वकील का कहना था कि क्योंकि निवारक नजरबंदी (Preventive Detention) सीधे व्यक्ति के मौलिक अधिकार को प्रभावित करती है, इसलिए दूसरी हैबियस कॉर्पस याचिका नए आधारों पर दायर की जा सकती है। इसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला Lallubhai Jogibhai Patel बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1981) बताया, जिसमें कहा गया था:
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“गैर-कानूनी नजरबंदी के मामलों में रेस जुडिकाटा का सिद्धांत लागू नहीं होता और नई परिस्थितियों में दूसरी हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की जा सकती है।”
साथ ही उन्होंने Revathi बनाम तमिलनाडु राज्य (2024) का हवाला दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने दूसरी याचिका स्वीकार की थी।
राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक ने कहा कि Boominathan बनाम तमिलनाडु राज्य (2023) के फैसले के अनुसार, अगर आधार पहले से मौजूद थे और पहली याचिका में नहीं उठाए गए, तो उन्हीं आधारों पर दोबारा दूसरी हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल नहीं की जा सकती।
हाईकोर्ट ने साफ कहा कि हैबियस कॉर्पस याचिकाओं में रेस जुडिकाटा का नियम लागू नहीं होता। लेकिन दूसरी याचिका तभी स्वीकार होगी जब उसमें नए और अलग आधार हों, जो पहली याचिका दाखिल करते समय उपलब्ध नहीं थे।
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“दूसरी हैबियस कॉर्पस याचिका केवल तभी मान्य होगी जब उसमें उठाए गए आधार पहली याचिका दाखिल या सुनवाई के समय मौजूद न रहे हों। अन्यथा दूसरी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।”
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के आधार पहले से मौजूद थे और पहली याचिका में ही उठाए जा सकते थे। इसलिए दूसरी याचिका पर विचार नहीं किया गया। अदालत ने H.C.P.(MD) No.718 of 2025 खारिज कर दी और रोहित कुमार की नजरबंदी बरकरार रखी।
केस शीर्षक: Mirthunaj Kumar बनाम तमिलनाडु राज्य एवं अन्य
केस नंबर: H.C.P.(MD) No.718 of 2025