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दिल्ली हाईकोर्ट ने रेवांता हाउसिंग प्रोजेक्ट मामले में एनसीडीआरसी के आदेशों को चुनौती खारिज की

Prince V.

नवीन एम. रहेजा एवं अन्य बनाम दिनेश गोयल एवं अन्य - दिल्ली हाईकोर्ट ने रहेजा डेवलपर्स की याचिका खारिज की, रेवांता प्रोजेक्ट में NCDRC के आदेशों को बरकरार रखते हुए घर खरीदारों को राहत दी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने रेवांता हाउसिंग प्रोजेक्ट मामले में एनसीडीआरसी के आदेशों को चुनौती खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को रियल एस्टेट डेवलपर नवीन एम. रहेजा और अन्य की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के दो आदेशों को चुनौती दी थी। यह विवाद गुरुग्राम स्थित ''रेवांता'' प्रोजेक्ट से जुड़ा है, जिसमें घर खरीदारों ने लंबे विलंब के कारण या तो कब्ज़ा या फिर धनवापसी की मांग की थी।

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पृष्ठभूमि

साल 2012 में रहेजा डेवलपर्स ने रेवांता प्रोजेक्ट के फ्लैट्स 42 महीने (छह माह की ग्रेस अवधि सहित) में देने का वादा किया था। बाद में खरीदारों ने आरोप लगाया कि न केवल निर्माण में भारी देरी हुई, बल्कि कंपनी ने उनकी सहमति के बिना अतिरिक्त मंज़िलें जोड़कर नक्शे में बदलाव भी कर दिया।

35 उपभोक्ता शिकायतों पर सुनवाई के बाद NCDRC ने 26 अगस्त 2022 को व्यापक आदेश दिए। कुछ खरीदारों को पूरी धनराशि 9% वार्षिक ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया गया, जबकि अन्य को कब्ज़ा दिलाने के साथ-साथ देरी का मुआवजा देने को कहा गया। अगर कंपनी समय पर आदेश मानने में नाकाम रहती, तो 12% तक ब्याज चुकाना पड़ता।

बाद में जब शिकायतकर्ता दंपत्ति दिनेश और शेफाली गोयल ने आदेश की तामील की मांग की, तो फरवरी 2025 में NCDRC ने कंपनी के निदेशकों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने और यह बताने को कहा कि वे आदेश का पालन कैसे करेंगे। यही आदेश भी हाईकोर्ट में चुनौती का हिस्सा था।

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अदालत की टिप्पणियाँ

रहेजा की ओर से वकील योगेंद्र मिश्रा ने दलील दी कि NCDRC के आदेश शून्य हैं क्योंकि बेंच केवल ''तकनीकी सदस्यों” से बनी थी, उसमें कोई न्यायिक सदस्य नहीं था।

'' ऐसी पीठ के पास अधिकार क्षेत्र ही नहीं होता,'' उन्होंने कहा और कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।

वहीं उपभोक्ताओं की ओर से अधिवक्ता अर्जुन महाजन ने कहा कि आयोग पहले ही इस आपत्ति को खारिज कर चुका है। उन्होंने अदालत को याद दिलाया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह बाध्यता नहीं है कि हर पीठ में एक न्यायिक सदस्य होना ही चाहिए।

''अगर कोई जटिल कानूनी प्रश्न उठता है तो नियमन 12 के तहत मामला अध्यक्ष के पास भेजा जा सकता है,'' उन्होंने दलील दी।

जस्टिस मनोज जैन ने प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा,

''न तो कानून और न ही नियम यह कहते हैं कि हर पीठ में न्यायिक सदस्य होना आवश्यक है। यदि ऐसा होता तो नियमन 12 की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।''

उन्होंने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता मूल उपभोक्ता शिकायतों के पक्षकार ही नहीं थे और उन्होंने आदेश को चुनौती भी काफी देर से दी। अदालत ने कहा,

''इस देरी के लिए कोई संतोषजनक कारण पेश नहीं किया गया है।''

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निर्णय

अंत में जस्टिस जैन ने साफ़ शब्दों में कहा कि NCDRC की पीठ की संरचना वैध थी और उसके आदेश रद्द नहीं किए जा सकते।

''वर्तमान याचिका में कोई दम नहीं है। इसे खारिज किया जाता है,'' फैसले में दर्ज किया गया।

इस निर्णय के बाद उपभोक्ता आयोग के वे आदेश प्रभावी रहेंगे, जिनमें खरीदारों को या तो ब्याज सहित धनवापसी या फिर समयबद्ध कब्ज़ा दिलाने की बात कही गई है।

मामले का शीर्षक: नवीन एम. रहेजा एवं अन्य बनाम दिनेश गोयल एवं अन्य

मामला संख्या: सी.एम.(एम) 381/2025 तथा सी.एम. आवेदन 11218/2025 एवं सी.एम. आवेदन 11219/2025

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