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दिल्ली उच्च न्यायालय ने शादी का झूठा वादा करने के आरोप में बलात्कार की प्राथमिकी रद्द की, कहा- सहमति से संबंध को अपराध नहीं बनाया जा सकता

Shivam Y.

अंकित राज बनाम दिल्ली राज्य एवं अन्य - दिल्ली उच्च न्यायालय ने शादी के झूठे वादे के आधार पर बलात्कार की एफआईआर को खारिज कर दिया, फैसला सुनाया कि सहमति से बनाए गए संबंध को यौन हमला नहीं माना जा सकता।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शादी का झूठा वादा करने के आरोप में बलात्कार की प्राथमिकी रद्द की, कहा- सहमति से संबंध को अपराध नहीं बनाया जा सकता

दिल्ली हाई कोर्ट ने 3 सितम्बर 2025 को बिहार के एक बैंक मैनेजर के खिलाफ दर्ज बलात्कार (धारा 376 IPC) की FIR को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति स्वरना कांत शर्मा ने कहा कि यह मामला शोषण का नहीं बल्कि एक जटिल सहमति-आधारित संबंध का है। अदालत ने स्पष्ट किया कि असफल निजी रिश्तों को निपटाने के लिए आपराधिक कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।

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पृष्ठभूमि

यह FIR नवम्बर 2024 में नबी करीम थाने में दर्ज हुई थी। शिकायतकर्ता, 24 वर्षीय युवती, ने आरोप लगाया कि आरोपी ने शादी का झूठा भरोसा देकर उसे शारीरिक और भावनात्मक रूप से शोषित किया। बाद में उसने दूसरी महिला से दहेज लेकर विवाह कर लिया। युवती ने वाराणसी, दिल्ली और अन्य शहरों की घटनाओं का उल्लेख किया, जहाँ उसने कहा कि आरोपी ने विवाह का वादा कर जबरन शारीरिक संबंध बनाए।

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जांच के दौरान जनवरी 2024 का एक आर्य समाज मंदिर, बिहार का विवाह प्रमाणपत्र सामने आया। आरोपी ने दावा किया कि दोनों ने शादी की थी, जबकि युवती कभी उसे अपना पति बताती रही और कभी विवाह की वैधता से इनकार करती रही।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति शर्मा ने इन विरोधाभासों पर ध्यान दिया। एक ओर, महिला ने महिला अपराध प्रकोष्ठ (CAW Cell) में कहा था कि उसने जनवरी 2024 में शादी की थी और आरोपी को अपना पति बताया। दूसरी ओर, बाद में उसने कहा कि प्रमाणपत्र फर्जी था।

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पीठ ने कहा,

"अगर दोनों विवाहित थे तो पति-पत्नी के बीच बलात्कार का आरोप नहीं बनता। अगर नहीं थे, तब भी उसके द्वारा आरोपी की दूसरी शादी जानने के बाद भी संबंध बनाए रखने से धोखे के दावे पर संदेह खड़ा होता है।"

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि दोनों वयस्क थे—महिला स्वतंत्र रूप से दिल्ली में रहकर UPSC की तैयारी कर रही थी।

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न्यायाधीश ने माना कि लंबे समय तक स्वेच्छा से बने संबंध, जो आरोपी की दूसरी शादी की जानकारी के बाद भी जारी रहे, बलात्कार के आरोप को कमजोर करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने झूठे वादे और बाद की परिस्थितियों में निभा न सकने वाले वादे में फर्क समझाया।

"धोखे से सहमति लेना और परस्पर समझदारी से रिश्ते निभाना, दोनों अलग-अलग स्थितियां हैं," अदालत ने कहा।

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फैसला

अंततः अदालत ने कहा कि FIR में बलात्कार के आवश्यक तत्व नहीं पाए गए। न्यायमूर्ति शर्मा ने FIR संख्या 447/2024 और इससे जुड़े सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया।

आदेश में निष्कर्ष दिया गया:

"वयस्क जब निजी संबंधों में प्रवेश करते हैं तो उन्हें अपने निर्णयों की जिम्मेदारी लेनी होगी। हर असफल रिश्ते को बलात्कार का मामला बना देना, वास्तविक मामलों को हल्का कर देगा और न्याय प्रणाली पर बोझ बढ़ाएगा।"

केस का शीर्षक: अंकित राज बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य एवं अन्य

केस संख्या: CRL.M.C. 3061/2025 & CRL.M.A. 13572/2025

निर्णय की तिथि: 03 सितंबर 2025

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