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दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुलमोहर पार्क संपत्ति विवाद में अपील खारिज कर दी, ग्राहक की इच्छा के आधार पर वकील के दावे की आलोचना की

Shivam Y.

सूरज सक्सेना बनाम सरबजीत सिंह - दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुलमोहर पार्क संपत्ति विवाद में अपील खारिज कर दी, वसीयत के माध्यम से वकील के दावे को खारिज कर दिया, रिसीवरशिप को बरकरार रखा।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुलमोहर पार्क संपत्ति विवाद में अपील खारिज कर दी, ग्राहक की इच्छा के आधार पर वकील के दावे की आलोचना की

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुलमोहर पार्क स्थित एक कीमती मकान को लेकर चल रहे लंबे विवाद में दो जुड़ी हुई अपीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने उस प्रैक्टिसिंग वकील के दावे को भी ठुकरा दिया जिसने पहले इसी मामले में मृत प्रतिवादी की तरफ से पेशी की थी, लेकिन बाद में स्वयं वसीयत के आधार पर संपत्ति पर हक जताया।

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न्यायमूर्ति अनिल क्षेतरपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने 18 अगस्त 2025 को यह फैसला सुनाते हुए पहले के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें संपत्ति को न्यायालय द्वारा नियुक्त रिसीवर के संरक्षण में दिया गया था।

पृष्ठभूमि

यह विवाद 2010 में दाखिल उस वाद से जुड़ा है जिसे सरबजीत सिंह ने दाखिल किया था। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली के गुलमोहर पार्क स्थित सी-9 मकान पर उनका स्वामित्व है। उनका कहना था कि 1982 में मूल स्वामी, स्व. सुरेन्द्र मोहन तरुण ने उन्हें यह संपत्ति समझौता-पत्र, सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी, कब्जा पत्र, शपथपत्र, रसीद और एक पंजीकृत वसीयत जैसे दस्तावेजों के माध्यम से बेच दी थी।

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मामला 2009 में तब और उलझ गया जब तरुण ने कथित रूप से दोबारा कब्जा कर लिया। इस पर सिंह ने स्थायी निषेधाज्ञा और हर्जाने की मांग की। 2011 में तरुण ने अदालत को यह वचन दिया कि वह न तो तीसरे पक्ष को अधिकार देगा और न ही कोई निर्माण करेगा। लेकिन 2021 में उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति पर कई दावेदार सामने आ गए - उनके कथित वारिस, उनकी घरेलू सहायिका और चौंकाने वाली बात यह कि उनके ही वकील सुरज सक्सेना।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान सक्सेना ने दावा किया कि तरुण ने मई 2021 में एक पंजीकृत वसीयत और उसके बाद एक परिशिष्ट (कोडिसिल) बनाकर संपत्ति उन्हें दी थी। जबकि चल संपत्ति एक चैरिटेबल ट्रस्ट को दी गई थी। उनके वकील का तर्क था कि एकल न्यायाधीश ने रिसीवर नियुक्त करते समय याचिका की सीमा से बाहर जाकर आदेश दिया और इस तरह सक्सेना से वास्तविक कब्जा छीन लिया गया।

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वहीं, प्रतिवादी के वकीलों ने कहा कि सक्सेना कभी भी संपत्ति के कब्जे में नहीं रहे और केवल उनका नेमप्लेट बाहर लगाया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि फॉरेंसिक रिपोर्ट सिंह के 1982 के दस्तावेजों की पुष्टि करती है और 2011 के वचन का उल्लंघन भी हुआ।

पीठ ने इन दलीलों से सहमति जताई। जजों ने कहा:-

"यह निर्विवाद है कि 02.08.2011 के वचन का उल्लंघन हुआ, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि संपत्ति में किसी तीसरे पक्ष का अधिकार नहीं बनाया जाएगा।"

अदालत ने आगे टिप्पणी की कि चूंकि सक्सेना मृतक प्रतिवादी के वकील थे, वे व्यक्तिगत रूप से संपत्ति पर दावा नहीं कर सकते।

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"अदालत में प्रैक्टिस करने वाले वकील अदालत के अधिकारी माने जाते हैं… उनसे उम्मीद होती है कि वे संस्था की गरिमा बनाए रखें। उन्हें अपने मुवक्किल की छोड़ी गई संपत्ति पर दावा नहीं करना चाहिए।"

न्यायालय ने यह भी माना कि जब कई दावेदार सामने हों - जिनमें कथित वारिस और घरेलू सहायिका भी शामिल हों - तो संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए रिसीवर नियुक्त करना जरूरी है।

फैसला

अपीलों में कोई दम न पाते हुए हाईकोर्ट ने FAO(OS) 60/2025 और FAO(OS) 75/2025 दोनों को खारिज कर दिया। अदालत ने गुलमोहर पार्क की संपत्ति पर रिसीवर नियुक्त करने के पहले आदेश को बरकरार रखा और सभी लंबित आवेदन निपटा दिए।

इस फैसले के साथ अब अंतिम स्वामित्व का फैसला होने तक संपत्ति तटस्थ नियंत्रण में रहेगी।

केस का शीर्षक: सूरज सक्सेना बनाम सरबजीत सिंह

केस नंबर: FAO(OS) 75/2025

फैसले की तारीख: 18.08.2025

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