एक महिला वादिनी को बड़ी राहत देते हुए, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपील दाख़िल करने में 400 से अधिक दिनों की देरी को माफ़ कर दिया। मामला कमला देवी बनाम राज कुमार एवं अन्य इस बात पर केंद्रित हो गया था कि क्या देर से दाख़िल अपील पर विचार किया जा सकता है या नहीं।
पृष्ठभूमि
ट्रायल कोर्ट ने 7 मार्च 2022 को अपना फैसला सुनाया था, लेकिन कमला देवी, जो शिकायतकर्ता हैं, ने दावा किया कि उन्हें इस बारे में लगभग एक साल बाद फरवरी 2023 में ही जानकारी मिली। जानकारी मिलने के बाद उन्होंने तुरंत प्रमाणित प्रति के लिए आवेदन किया और बाद में गवाहों के बयान भी मांगे। ये प्रतियां आखिरकार अप्रैल 2023 में उन्हें मिल सकीं।
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उनके वकील ने दलील दी कि यह देरी जानबूझकर नहीं बल्कि परिस्थितियों की वजह से हुई। दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि लगभग एक साल तक चुप रहने का कोई बहाना नहीं है और यह कदम “न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग” है।
न्यायमूर्ति राकेश काइंथला ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद यह रेखांकित किया कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 14(ए)(3) की वह प्रावधान, जिसमें अपील दाख़िल करने की अधिकतम सीमा 180 दिन तय थी, को पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था और बाद में अन्य हाईकोर्ट्स ने भी इसकी पुष्टि की।
बेंच ने स्पष्ट किया, “एक बार जब किसी उच्च न्यायालय ने किसी विधायी प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया हो, तो वह पूरे भारत में लागू होता है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट उसे पलट न दे।”
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न्यायालय ने कमला देवी की यह दलील भी स्वीकार की कि वह ट्रायल के दौरान मौजूद नहीं थीं और उन्हें सचमुच फरवरी 2023 तक फैसले की जानकारी नहीं थी। आदेश में दर्ज किया गया, “चूँकि आवेदक को फैसले के बारे में पता ही नहीं था, इसलिए वह पहले अपील दाख़िल नहीं कर सकती थीं।”
निर्णय
हाईकोर्ट ने कमला देवी की याचिका स्वीकार कर ली और अपील दाख़िल करने में हुई 403 दिन की देरी को माफ़ कर दिया। अब इस मामले को आपराधिक अपील के रूप में पंजीकृत किया जाएगा और आगे की सुनवाई के लिए रिकॉर्ड तलब किया गया है। प्रतिवादियों की ओर से अधिवक्ता दिव्य राज सिंह ने अदालत में नोटिस स्वीकार कर लिया।
केस का शीर्षक: कमला देवी बनाम राज कुमार एवं अन्य
दिनांक: 8 सितंबर 2025