भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि बीमा कंपनी किसी भी तरह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है, खासकर उस सड़क दुर्घटना मामले में जिसमें एक यूटिलिटी वाहन शामिल था। इसने हाईकोर्ट के "पे एंड रिकवर" (पहले भुगतान करो और फिर मालिक से वसूली करो) आदेश को खारिज कर दिया। यह मामला उस समय शुरू हुआ जब बोलेरो कैंपर वाहन की दुर्घटना में कई लोगों की मौत और चोटें हुईं और मुआवजे के लिए कई याचिकाएं दायर की गईं।
पृष्ठभूमि
यह मामला तब शुरू हुआ जब वाहन मालिक श्यामलाल ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी को पहले पीड़ितों को मुआवजा देने और बाद में वह राशि वाहन मालिक से वसूलने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने यह आदेश बीमा पॉलिसी में दर्ज उस शर्त पर आधारित किया था जिसमें यात्रियों को ले जाने की पाबंदी का जिक्र था।
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अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि बोलेरो "यूटिलिटी वैन" के रूप में पंजीकृत थी, जिसमें चालक समेत पाँच सीटें थीं और इसके पास वैध कॉन्ट्रैक्ट कैरिज परमिट था। बीमा पॉलिसी में भी 4+1 सीटिंग का जिक्र था। ऐसे में बीमा कंपनी बाद में यह नहीं कह सकती कि यह सिर्फ माल ढुलाई वाहन था।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने वाहन के पंजीकरण, बीमा दस्तावेज़ और गवाहियों का गहन परीक्षण किया। अदालत ने नोट किया कि बीमा कंपनी के अपने शाखा प्रबंधक ने स्वीकार किया था कि वाहन एक यूटिलिटी वैन था, जो माल और यात्रियों दोनों को ले जाने के लिए बनाया गया है।
"उपयोग की सीमा केवल माल वाहनों पर लागू होती है," पीठ ने टिप्पणी की और कहा कि बीमा कंपनी ने सभी दस्तावेज़ों की जांच के बाद ही पॉलिसी जारी की थी, जिसमें पाँच यात्रियों के परमिट का भी उल्लेख था। बीमा कंपनी का यह तर्क भी खारिज कर दिया गया कि वाहन में तय संख्या से अधिक यात्री थे। प्रत्यक्षदर्शी गवाह ने स्पष्ट कहा था कि वाहन में सिर्फ चार यात्री थे, जबकि अन्य मृतक पैदल चल रहे लोग थे जिन्हें वाहन ने टक्कर मारी थी।
बीमा कंपनी ने एक मुआवजा मामले (जगदीश प्रसाद गौड़ की मौत से संबंधित) में यह आपत्ति उठाई थी कि आय से व्यक्तिगत खर्च की कटौती (एक-तिहाई) नहीं की गई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल को निर्देश दिया कि राशि वितरित करने से पहले एक-तिहाई कटौती अवश्य लागू की जाए।
फैसला
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के फैसले को बहाल कर दिया, केवल ऊपर बताए गए छोटे संशोधन के साथ। इस फैसले के बाद यह साफ हो गया कि श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी को पूरा मुआवजा देना होगा।
पीठ ने कहा:
"हमें हाईकोर्ट के पे एंड रिकवर आदेश को बनाए रखने का कोई कारण नहीं दिखता। जिम्मेदारी बीमा कंपनी पर है और उसे ही पूरी तरह निभाना होगा।"
इस प्रकार, अपील स्वीकार कर ली गई और वाहन मालिक को राहत मिली, वहीं पीड़ितों को यह आश्वासन मिला कि उन्हें सीधा बीमा कंपनी से मुआवजा मिलेगा।
केस का शीर्षक: श्याम लाल बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य
केस संख्या: 2022 की सिविल अपील संख्या 5177-81