Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बलात्कार और अत्याचार मामले में बरी के आदेश को बरकरार रखा, राज्य की अपील खारिज

Shivam Y.

हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम माम राज - हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बलात्कार और एससी/एसटी अत्याचार मामले में बरी करने के फैसले को बरकरार रखा, विश्वसनीय साक्ष्य के अभाव का हवाला देते हुए राज्य की अपील को खारिज कर दिया।

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बलात्कार और अत्याचार मामले में बरी के आदेश को बरकरार रखा, राज्य की अपील खारिज

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट शिमला ने मम राज की बरी को बरकरार रखा है, जिन पर बलात्कार, आपराधिक धमकी और जाति-आधारित अत्याचार के आरोप लगे थे। राज्य सरकार की 2014 की बरी के खिलाफ दायर अपील को 29 अगस्त 2025 को न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति सुशील कुक्रेजा की खंडपीठ ने खारिज कर दिया।

Read in English

पृष्ठभूमि

मामला वर्ष 2011 का है जब पीड़िता ने आरोप लगाया कि आरोपी मम राज ने कई बार जबरन शारीरिक संबंध बनाए, जातिसूचक गालियां दीं और परिवार को धमकाया। उसने यह भी कहा कि आरोपी ने पत्रों के जरिये उसे ब्लैकमेल किया और एक बार उसका हाथ पकड़ लिया था, जिसे उसके पति ने छुड़वाया।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने गवाह संरक्षण योजना को ज़मानत रद्द करने के विकल्प के रूप में मानने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार लगाई, नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया

हालांकि, सितंबर 2014 में नाहन के विशेष न्यायाधीश ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए मम राज को बरी कर दिया। राज्य ने बाद में इस फैसले को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 378 के तहत चुनौती दी।

अदालत की टिप्पणियां

हाई कोर्ट की खंडपीठ ने पीड़िता की गवाही और आरोपी के साथ उसके बीच हुए पत्राचार सहित सभी साक्ष्यों की गहन जांच की। न्यायाधीशों ने पाया कि उसके बयान लगातार बदलते रहे और स्पष्टता की कमी रही।

"पीड़िता ने तीन बार बलात्कार का आरोप लगाया, लेकिन वह इन घटनाओं की तारीख, महीना या साल तक नहीं बता सकी," पीठ ने कहा।

Read also:- महाराष्ट्र में SC/ST अत्याचार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजकुमार जैन की अग्रिम जमानत रद्द की

न्यायाधीशों ने यह भी नोट किया कि गंभीर आरोप लगाने के बावजूद उसने तुरंत अधिकारियों या स्थानीय पंचायत नेताओं से शिकायत नहीं की।

सबसे अहम, अदालत में पेश किए गए पत्र स्नेहपूर्ण लगे, जबरदस्ती के नहीं। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की,

“इन पत्रों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि ये पीड़िता की भावनाओं का प्रतिबिंब हैं और इनमें कहीं भी दबाव या भय नहीं दिखता।”

एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत लगाए गए जातिसूचक गालियों के आरोपों की भी अदालत ने बारीकी से जांच की। यहां भी गवाही कमजोर साबित हुई। जिन गवाहों को अभियोजन पक्ष ने पेश किया, उन्हें अदालत ने "स्वार्थी गवाह" माना क्योंकि उनका आरोपी के परिवार के साथ ज़मीन का विवाद चल रहा था। इससे उनके बयानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे।

Read also:- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने POCSO मामले में जमानत पर रोक लगाई, जमानत की सुनवाई में पीड़िता की अनिवार्य भागीदारी पर जोर दिया

फैसला

अपने अंतिम आदेश में हाई कोर्ट ने निचली अदालत की दलीलों को सही माना और कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी का अपराध संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।

पीठ ने कहा, "रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आरोपी के अपराध को साबित कर सके।"

इसके साथ ही राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी गई। मम राज की बरी बरकरार रखी गई और उनकी जमानत शर्तें समाप्त कर दी गईं। लंबित आवेदनों को भी निपटा दिया गया।\

केस का शीर्षक: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम माम राज

केस संख्या: आपराधिक अपील संख्या 266/2015

Advertisment

Recommended Posts