गौहाटी हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें गोलपाड़ा जिले की मुश्त्त. उलूफा खातून उर्फ़ उलूपा खातून को अवैध प्रवासी करार दिया गया था। जस्टिस कल्याण राय सुराणा और जस्टिस राजेश मजूमदार की खंडपीठ ने मामले को ट्रिब्यूनल के पास वापस भेजते हुए कहा कि उपलब्ध वोटर लिस्ट और अन्य दस्तावेजों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाए।
पृष्ठभूमि
यह मामला 2023 के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफ़टी) नं.1, गोलपाड़ा के आदेश से जुड़ा है, जिसमें कहा गया था कि खातून अपनी भारतीय नागरिकता साबित नहीं कर सकीं। ट्रिब्यूनल ने माना कि वह अपने पिता बदशा अली से रिश्ता साबित करने में सफल रही हैं, लेकिन यह साबित नहीं कर पाईं कि उनका पारिवारिक वंश 1979 से पहले भारत में मौजूद था। इसी आधार पर उन्हें 25 मार्च 1971 के बाद भारत में प्रवेश करने वाली विदेशी घोषित किया गया - यह वही तारीख है जो असम समझौते में तय की गई थी।
इस आदेश को चुनौती देते हुए खातून ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की और कहा कि कई महत्वपूर्ण सबूत जैसे मतदाता सूची और पारिवारिक रिकॉर्ड को नजरअंदाज कर दिया गया।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें विस्तार से सुनीं। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि "रामजान," "तोरामजान" और "तोराजान" जैसे नामों में मामूली वर्तनी की गलतियाँ clerical error हैं, न कि अलग वंश का सबूत। लेकिन ट्रिब्यूनल ने इन्हीं विसंगतियों को उनके खिलाफ मान लिया।
जस्टिस मजूमदार ने आदेश में कहा:
"ट्रिब्यूनल ने दादा-दादी और माता-पिता के निवास स्थान बदलने के तथ्यों और मतदाता सूचियों (1966, 1979 और 1985) में नामों में मामूली अंतर को सही तरह से नहीं परखा।"
अदालत ने यह भी माना कि ट्रिब्यूनल ने पिता-पुत्री के रिश्ते को स्वीकार किया, लेकिन इस रिश्ते को दादा के नाम से जुड़ी मतदाता सूचियों के आधार पर आगे नहीं बढ़ाया। न्यायाधीशों के अनुसार, ऐसे दस्तावेज़ों को बिना उचित कारण नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
फैसला
हाईकोर्ट ने 2023 के ट्रिब्यूनल आदेश को रद्द करते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए भेज दिया। आदेश में कहा गया:
"रिट याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मामला कानून के अनुसार नए सिरे से विचार हेतु ट्रिब्यूनल को लौटाया जाता है।"
अदालत ने खातून को निर्देश दिया कि वे आदेश की प्रमाणित प्रति लेकर 20 दिनों के भीतर ट्रिब्यूनल के सामने पेश हों। ट्रिब्यूनल को दो महीने के भीतर उपलब्ध रिकॉर्ड के आधार पर नया मत देने के लिए कहा गया है।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अन्य दलीलों पर कोई राय नहीं दी और स्पष्ट किया कि किसी भी पक्ष पर अतिरिक्त खर्च नहीं डाला जाएगा। अब खातून की नागरिकता का फैसला ट्रिब्यूनल की नई सुनवाई पर निर्भर करेगा।
केस का शीर्षक: मुस्त. उलूफा खातून @ उलूपा खातून बनाम भारत संघ और 5 अन्य
केस नंबर: WP(C)/3214/2024