एक अहम फैसले में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को स्वयंभू संत रामपाल की 2014 हिसार हिंसा से जुड़े दो हत्या मामलों में सुनाई गई उम्रकैद की सज़ाओं को निलंबित कर दिया। जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस दीपिंदर सिंह नलवा की खंडपीठ ने माना कि इस मामले में कई पहलुओं, खासकर मौत के वास्तविक कारण, पर और गहराई से विचार की ज़रूरत है।
पृष्ठभूमि
ये मामले नवंबर 2014 की उस झड़प से जुड़े हैं जब पुलिस ने हिसार स्थित रामपाल के आश्रम से उनकी गिरफ्तारी की कोशिश की थी। टकराव के दौरान चार महिलाओं और एक बच्चे की मौत हो गई थी। इसके बाद 2018 में विशेष अदालत ने रामपाल को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। तब से वे दस साल से ज़्यादा जेल में रह चुके हैं और हाईकोर्ट में सज़ा को चुनौती दे रहे हैं।
रामपाल के वकीलों ने दलील दी कि मौतें किसी हत्या की वजह से नहीं हुईं बल्कि पुलिस की तरफ से छोड़े गए आंसू गैस के गोले से घुटन और भगदड़ मच गई। “असल में मौतें तब हुईं जब पुलिस ने आश्रम में आंसू गैस छोड़े… घुटन से हालात बिगड़े और भगदड़ मच गई,” उनके वकील ने कहा।
राज्य ने इस पर अलग राय रखी। उसका कहना था कि रामपाल ने महिलाओं और बच्चों को एक कमरे में बंद कर रखा था, जिससे घुटन की स्थिति बनी और उनकी मौत हो गई।
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अदालत की टिप्पणियां
खंडपीठ ने साफ किया कि गवाहों की गवाही में विरोधाभास नज़रअंदाज़ नहीं किए जा सकते। “यहां तक कि प्रत्यक्षदर्शी, जो मृतकों के रिश्तेदार हैं, उन्होंने भी अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया और कहा कि मौतें आंसू गैस से बनी घुटन की वजह से हुईं,” अदालत ने कहा।
न्यायाधीशों ने रामपाल की बढ़ती उम्र और अब तक जेल में गुज़ारे वक्त को भी अहम माना। “ध्यान में रखते हुए कि आवेदक/अपीलकर्ता की उम्र इस समय लगभग 74 साल है और उसने 10 साल, 8 महीने और 21 दिन की सज़ा भुगत ली है, हम इसे सज़ा निलंबित करने के लिए उपयुक्त मामला मानते हैं,” आदेश में कहा गया।
फैसला
राहत देते हुए अदालत ने रामपाल की सज़ा निलंबित कर दी लेकिन कुछ सख्त शर्तें भी लगाईं। उन्हें बड़े धार्मिक जमावड़ों में शामिल होने और किसी भी तरह की ‘भीड़ मानसिकता’ को बढ़ावा देने से रोक दिया गया है। खंडपीठ ने चेतावनी दी कि यदि इन शर्तों का उल्लंघन हुआ तो राज्य को उनकी जमानत रद्द करने का पूरा अधिकार होगा।
यह फैसला ठीक कुछ दिन पहले दिए गए उस आदेश के बाद आया है जिसमें अदालत ने इसी तरह की एक अन्य घटना—एक महिला अनुयायी की मौत से जुड़े मामले—में भी उनकी सज़ा निलंबित की थी। दोनों ही मामलों में अदालत ने गवाहों की कमज़ोर गवाही और रामपाल की लंबी कैद को अस्थायी राहत का आधार माना।
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इन निलंबनों के बाद रामपाल मुख्य अपीलों की सुनवाई तक बाहर रहेंगे। अब देखना होगा कि आगे गवाही और साक्ष्य क्या रुख लेते हैं—सज़ा बरकरार रहती है या विरोधाभासों के चलते गिर जाती है।
केस का शीर्षक: संत रामपाल बनाम हरियाणा राज्य
आदेश की तिथि: 2 सितंबर, 2024