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जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भूपिंदर कुमार की पीएसए के तहत की गई निवारक हिरासत को रद्द किया, अधिकारों के उल्लंघन का हवाला

Shivam Y.

भूपिंदर कुमार @ पप्पू बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य। - जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन और अधिकारियों की चूक का हवाला देते हुए भूपिंदर कुमार की पीएसए हिरासत को रद्द कर दिया।

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भूपिंदर कुमार की पीएसए के तहत की गई निवारक हिरासत को रद्द किया, अधिकारों के उल्लंघन का हवाला

3 सितम्बर 2025 को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में भूपिंदर कुमार उर्फ पप्पू की निवारक हिरासत को रद्द कर दिया। उन्हें जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत बंद किया गया था। इस मामले की सुनवाई जस्टिस एम.ए. चौधरी ने की और उन्होंने संवैधानिक सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गहरी टिप्पणी की।

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पृष्ठभूमि

कठुआ के जिला मजिस्ट्रेट ने 16 जनवरी 2025 को हिरासत आदेश (संख्या PSA/137) जारी किया था। इसमें कुमार पर मवेशियों के अवैध परिवहन और आईपीसी पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत दर्ज कई एफआईआर के आधार पर कार्रवाई की गई थी। अधिकारियों का कहना था कि उनकी गतिविधियाँ "लोक व्यवस्था के लिए हानिकारक" हैं और आगे अपराध रोकने के लिए हिरासत जरूरी है।

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लेकिन कुमार की बेटी रोहिणी देवी ने अधिवक्ता जगपाल सिंह के जरिए आदेश को चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि यह आदेश बिना दिमाग लगाए यांत्रिक तरीके से पारित हुआ, उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी नहीं दी गई और वही एफआईआर आधार बनाई गईं जिन्हें पहले ही कोर्ट ने रद्द कर दिया था।

अदालत की टिप्पणियाँ

जस्टिस चौधरी ने रिकॉर्ड की गहन जांच की और कई खामियों की ओर इशारा किया। सबसे पहले, कैदी को यह साफ नहीं बताया गया कि वह सीधे निरोधक प्राधिकारी के पास भी प्रस्तुति दे सकता है, और न ही इसके लिए समय सीमा का उल्लेख किया गया।

पहले के फैसलों का हवाला देते हुए न्यायाधीश ने कहा,

"अधिकार की आंशिक जानकारी, जहाँ समय सीमा अहम है, संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत मौलिक अधिकार को नष्ट कर देती है।"

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दूसरे, अदालत ने माना कि हिरासत से जुड़े सभी दस्तावेज कैदी को पूरी तरह उपलब्ध और उसकी भाषा में समझाए नहीं गए। न्यायाधीश ने जोर दिया कि जब पूरा सामग्री उपलब्ध नहीं होती तो व्यक्ति प्रभावी प्रस्तुति नहीं दे सकता।

एक और गंभीर खामी यह थी कि कुमार की प्रस्तुति पर सरकार ने कार्रवाई करने में 52 दिन लगा दिए। अदालत ने इस ढिलाई को गंभीर उल्लंघन माना और कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में राज्य को "सबसे जल्दी" निर्णय लेना चाहिए।

अदालत ने यह भी आलोचना की कि अधिकारियों ने यह तथ्य अनदेखा किया कि कुमार की 2023 की हिरासत को पहले ही कोर्ट ने रद्द कर दिया था। उन्हीं एफआईआर पर फिर से नया आदेश जारी करना सुप्रीम कोर्ट के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है।

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आदेश में कहा गया,

"एक बार जब हिरासत आदेश रद्द हो जाता है, तो उसके आधारों को नए आदेश के लिए दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।"

फैसला

सभी आधारों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह निवारक हिरासत मनमानी, यांत्रिक और संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन है।

पीठ ने स्पष्ट कहा,

"निवारक हिरासत राज्य का एक कठोर हथियार है… इसे केवल असाधारण गंभीर मामलों में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए, हर छोटी बात पर नहीं।"

इसलिए अदालत ने याचिका को स्वीकार किया और 16 जनवरी 2025 का हिरासत आदेश संख्या PSA/137 रद्द कर दिया। आदेश दिया गया कि भूपिंदर कुमार को तुरंत रिहा किया जाए, यदि वे किसी अन्य मामले में वांछित न हों।

केस का शीर्षक: भूपिंदर कुमार @ पप्पू बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य।

केस नंबर: HCP No. 43/2025

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