दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार (3 सितम्बर 2025) को स्म्ट. रमा ओबेरॉय के खिलाफ चेक अनादरण मामले में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने याचिका को "पूर्णतः निराधार" बताया और यहां तक कि याचिकाकर्ता पर ₹10,000 का खर्च भी लगाया।
पृष्ठभूमि
मामला तब शुरू हुआ जब ट्रायल मजिस्ट्रेट ने ओबेरॉय को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए समन किया, जो कि चेक बाउंस को आपराधिक अपराध मानता है। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि शिकायत क़ानून द्वारा दी गई समयसीमा से पहले ही दायर की गई थी। उनके वकील ने यह भी तर्क दिया कि चेक पर उनके वास्तविक हस्ताक्षर नहीं हैं और चूंकि वादी पहले ही रकम वसूलने के लिए सिविल सूट दायर कर चुका है, इसलिए आपराधिक शिकायत नहीं चल सकती।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति काठपालिया ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद सभी तर्कों को निराधार पाया। नागरिक और आपराधिक मुकदमों के समानांतर चलने के सवाल पर अदालत ने स्पष्ट किया:
"जहाँ किसी लेन-देन पर नागरिक उपाय और आपराधिक उपाय दोनों उपलब्ध हैं, वहाँ पीड़ित व्यक्ति दोनों उपायों का सहारा ले सकता है।" उन्होंने समझाया कि जहाँ सिविल सूट का लक्ष्य राशि की वसूली है,
वहीं आपराधिक मामला उस अपराध के लिए दंडित करने का है जिसमें नोटिस मिलने के बाद भी चेक की राशि अदा नहीं की जाती।
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समयसीमा के मुद्दे पर जज ने साफ-साफ समझाया। कानून के अनुसार नोटिस मिलने के बाद भुगतान करने के लिए 15 दिन मिलते हैं। अगर ड्रॉअर भुगतान नहीं करता, तो एक महीने के भीतर आपराधिक शिकायत दायर की जा सकती है। इस मामले में नोटिस 22 सितम्बर 2022 को मिला था, जिसका अंतिम भुगतान दिन 7 अक्टूबर था। शिकायत 29 अक्टूबर को दर्ज की गई, जो पूरी तरह निर्धारित समयसीमा के अंदर थी। अदालत ने कहा, "यह तर्क पूर्णतः निराधार है।"
अंतिम बचाव में कहा गया कि ओबेरॉय के चेक असली हस्ताक्षरों से नहीं बने। लेकिन हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को इस स्तर पर मानने से इंकार कर दिया।
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न्यायमूर्ति काठपालिया ने कहा, "हस्ताक्षर असली हैं या नहीं, यह ट्रायल का विषय है। हाईकोर्ट… मिनी ट्रायल नहीं करेगा।"
निर्णय
मामले का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने याचिका को सीधा खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति काठपालिया ने इसे निरर्थक बताते हुए याचिकाकर्ता पर ₹10,000 का खर्च लगाया और निर्देश दिया कि यह राशि दो सप्ताह में दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी में जमा की जाए। साथ की गई अन्य सभी अर्जियाँ भी निपटा दी गईं और ट्रायल कोर्ट को आदेश अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा गया।
केस का शीर्षक: श्रीमती. रामा ओबेरॉय बनाम राज्य एनसीटी दिल्ली और अन्य