कलकत्ता हाईकोर्ट ने बैरकपुर स्थित स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पुलिस के उस नोटिस को चुनौती दी गई थी जिसमें पाँच शैक्षणिक वर्षों के छात्रवृत्ति अभिलेख मांगे गए थे। न्यायमूर्ति तीरथंकर घोष ने 3 सितम्बर 2025 को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस स्तर पर हस्तक्षेप करना चल रही जांच में बाधा डालने जैसा होगा, जबकि मामला व्यापक परीक्षा अनियमितताओं और छात्रवृत्ति योजनाओं के दुरुपयोग से जुड़ा हुआ है।
पृष्ठभूमि
मामला जून 2025 में गोपी बंधु गांगुली द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से शुरू हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि बैरकपुर स्थित एआईसीटीई से मान्यता प्राप्त डिप्लोमा संस्थान, रीजेंट इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (RIST) के परीक्षा केंद्र प्रमुख ने राज्य परिषद की परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर नकल कराई। शिकायत में यह भी कहा गया कि प्रश्नपत्र समय से पहले खोले गए, व्हाट्सऐप और टेलीग्राम पर लीक हुए, और शिक्षकों ने छात्रों को उत्तर उपलब्ध कराए।
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पुलिस के अनुसार, यह परीक्षा घोटाला छात्रवृत्तियों में वित्तीय गड़बड़ियों से जुड़ा हुआ है, जो योग्य छात्रों के लिए होती हैं। चूँकि RIST और स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय एक ही ट्रस्ट द्वारा संचालित हैं, जांचकर्ता विश्वविद्यालय तक पहुँचे। 25 जुलाई 2025 को मोहानपुर पुलिस ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 94 के तहत विश्वविद्यालय के कुलसचिव को नोटिस जारी कर 2020 से 2025 तक की छात्रवृत्ति लाभार्थियों की जानकारी मांगी।
हालाँकि विश्वविद्यालय का कहना था कि उसका RIST के आंतरिक मामलों से कोई संबंध नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता संदीपन गांगुली ने दलील दी:
"ऐक्याश्री या स्वामी विवेकानंद मेरिट-कम-मीन्स जैसी छात्रवृत्तियाँ पूरी तरह राज्य सरकार द्वारा संचालित होती हैं। तीन-स्तरीय सत्यापन प्रणाली है। विश्वविद्यालय केवल आवेदन अग्रेषित करता है, धनराशि सीधे राज्य सरकार द्वारा छात्रों के खाते में जाती है।"
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न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति घोष ने इस बात पर विचार किया कि क्या पुलिस अधिकारी BNSS की धारा 94 लागू करने में उचित थे, जिसके तहत अदालतें या जांच अधिकारी दस्तावेज़ तलब कर सकते हैं यदि वे “जांच के लिए आवश्यक या वांछनीय” हों। न्यायालय ने कहा कि यह शक्ति जांच और कार्यवाही में आवश्यक सामग्री तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए पूरक अधिकार है।
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि संवेदनशील चरण में चल रही जांच में अदालत को संयम बरतना चाहिए। ख्वाजा नज़ीर अहमद (1945) मामले का हवाला देते हुए न्यायालय ने याद दिलाया कि,
"न्यायपालिका को उन मामलों में पुलिस के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जो उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।"
विश्वविद्यालय के उत्पीड़न संबंधी तर्क को अस्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति घोष ने टिप्पणी की—
"जांच के दौरान एकत्रित सामग्री prima facie इस बात को संतुष्ट करती है कि जांच अधिकारी द्वारा मांगे गए दस्तावेज आवश्यक हैं। और गहराई में जाना स्वयं जांच में हस्तक्षेप होगा।"
निर्णय
हाईकोर्ट ने रिट याचिका (WPA 17617 of 2025) खारिज कर दी और पुलिस नोटिस को बरकरार रखा। इस आदेश के बाद स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय को मांगे गए छात्रवृत्ति अभिलेख उपलब्ध कराने होंगे।
फैसला विश्वविद्यालय की तत्काल कानूनी चुनौती को समाप्त करता है, लेकिन व्यापक जांच अभी खुली है। पुलिस अब परीक्षा घोटाले और छात्रवृत्ति दुरुपयोग दोनों की जांच जारी रखेगी। अदालत ने साफ कर दिया कि वह जांचकर्ताओं की भूमिका अपने हाथ में नहीं लेगी।
केस का शीर्षक: स्वामी विवेकानन्द विश्वविद्यालय एवं अन्य। बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।
केस नंबर: W.P.A. No. 17617 of 2025