दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए पत्नी को मिलने वाले भरण-पोषण की राशि 10,000 रुपये से बढ़ाकर 14,000 रुपये प्रतिमाह कर दी है। यह आदेश 1 सितम्बर 2025 को जस्टिस स्वरना कांत शर्मा ने सुनाया। मामला उस याचिका से जुड़ा था जिसमें पत्नी ने अपनी भरण-पोषण राशि बढ़ाने की मांग की थी।
पत्नी ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 127 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इस प्रावधान के तहत अगर परिस्थितियों में बदलाव आता है, तो पहले से तय भरण-पोषण राशि को अदालत बदल सकती है। निचली पारिवारिक अदालत ने 2024 में पत्नी की याचिका खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि पति की आय में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है।
विवाह और अलगाव की पृष्ठभूमि
पति-पत्नी का विवाह 1990 में हुआ था, लेकिन 1992 में दोनों अलग हो गए। दांपत्य जीवन से कोई संतान नहीं हुई। पत्नी ने पति और ससुराल पर उत्पीड़न और दहेज की मांग के आरोप लगाए। पति ने पहले वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना और बाद में तलाक का प्रयास किया, लेकिन अदालत ने उसे खारिज कर दिया।
साल 2012 में पारिवारिक अदालत ने आदेश दिया कि पति पत्नी को हर महीने 10,000 रुपये दे। इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट ने 2013 में बरकरार रखा।
वर्षों तक पत्नी ने बकाया राशि वसूलने के लिए कई निष्पादन याचिकाएँ दाखिल कीं। पिता की 2017 में मृत्यु के बाद वह पूरी तरह पति से मिलने वाली राशि पर निर्भर हो गई। 2018 में उसने 30,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग करते हुए आवेदन दिया, जिसमें बढ़ते खर्च, खराब स्वास्थ्य और पति की पेंशन को आधार बताया।
निचली अदालत का इंकार और हाईकोर्ट का रुख
2024 में पारिवारिक अदालत ने याचिका खारिज कर दी। अदालत का कहना था कि पति अब सेवानिवृत्त हो चुका है और उसकी पेंशन 40,068 रुपये प्रतिमाह है, जो पहले की कुल वेतन 45,455 रुपये से कम है। इसलिए आय में कोई खास बढ़ोतरी नहीं मानी जा सकती।
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पत्नी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि 2012 का आदेश पति की नेट आय 28,705 रुपये पर आधारित था, न कि ग्रॉस वेतन पर। इसके अलावा उसने बताया कि उसकी सेहत बिगड़ रही है, परिवार का सहारा नहीं है और उसे सीजीएचएस (CGHS) कार्ड तक नहीं दिया गया है।
हाईकोर्ट ने माना कि पारिवारिक अदालत ने गलत तुलना की। अदालत ने कहा, “2012 में तय किया गया 10,000 रुपये का भरण-पोषण उस समय उचित था जब पति की नेट आय 28,705 रुपये थी। लेकिन 2025 में जब उसकी पेंशन 40,068 रुपये है, तो वही राशि पर्याप्त नहीं मानी जा सकती।”
सीजीएचएस कार्ड पर अदालत की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पति अपनी पत्नी का नाम सीजीएचएस कार्ड में दोबारा शामिल करे। जस्टिस शर्मा ने कहा, “सीजीएचएस कार्ड पाने का अधिकार वैवाहिक संबंध से जुड़ा एक वैधानिक हक है। इसे केवल इसलिए नहीं छीना जा सकता कि पत्नी सरकारी अस्पतालों से इलाज करवा रही है।”
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हाईकोर्ट ने पति की उम्र और सीमित संसाधनों को भी ध्यान में रखा। पति-पत्नी दोनों ही वरिष्ठ नागरिक हैं और तीन दशक से अलग रह रहे हैं, लेकिन कानूनी रूप से अब भी विवाहित हैं। अदालत ने कहा कि दोनों की गरिमा बनाए रखने के लिए संतुलित आदेश आवश्यक है।
इसी आधार पर अदालत ने पत्नी की भरण-पोषण राशि बढ़ाकर 14,000 रुपये प्रतिमाह करने का आदेश दिया। यह बढ़ी हुई राशि याचिका दायर करने की तारीख से लागू होगी और पति को छह सप्ताह के भीतर बकाया चुकाना होगा।