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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का समर्थन किया, पहली पत्नी के बच्चों को बंटवारे का अधिकार दिया

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने चाउडम्मा बनाम वेंकटप्पा मामले में अपील खारिज करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें दासबोवी की पहली पत्नी के बच्चों को संपत्ति में हिस्सा दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का समर्थन किया, पहली पत्नी के बच्चों को बंटवारे का अधिकार दिया

सुप्रीम कोर्ट ने दिवंगत दासबोवी के परिवार से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे संपत्ति विवाद में प्रतिवादियों की अपील को खारिज कर दिया है। अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें वादियों को संपत्ति में हिस्सा देने का निर्देश दिया गया था।

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मामला पृष्ठभूमि

यह विवाद विभाजन के मुकदमे (O.S. No. 102/2001) से शुरू हुआ था, जिसे वादियों ने दायर किया था। उनका दावा था कि वे दासबोवी की पहली पत्नी भीमक्का @ सत्यक्का के बच्चे हैं और उन्हें पुश्तैनी जमीनों व एक मकान (देवीगिरे और कल्लाहल्ली गाँव, होसदुर्गा तालुक) में आधा हिस्सा मिलना चाहिए।

दूसरी ओर, प्रतिवादी चाउडम्मा (कथित दूसरी पत्नी) और उसका बेटा थे। उन्होंने दावा किया कि चाउडम्मा ही दासबोवी की एकमात्र वैध पत्नी थी और वादियों का संपत्ति में कोई हक नहीं है।

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ट्रायल कोर्ट ने वादियों का मुकदमा खारिज कर दिया था। लेकिन 2010 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसला पलटते हुए वादियों को हिस्सा देने का आदेश दिया।

  • प्रतिवादियों की ओर से:
    • वादियों की मां की शादी दासबोवी से नहीं हुई थी।
    • राजस्व अभिलेखों में सिर्फ प्रतिवादियों का नाम दर्ज है।
    • वादी कभी संयुक्त कब्जे में नहीं थे।
    • चाउडम्मा गवाही नहीं दे पाई क्योंकि वह बीमार थी।
  • वादियों की ओर से:
    • उनकी मां दासबोवी की पहली पत्नी थी।
    • गवाह पी.डब्ल्यू.2 हनुमंथप्पा ने शादी और बाद में चाउडम्मा आने पर मां के घर से निकाले जाने की पुष्टि की।
    • राजस्व रिकॉर्ड शादी या हक साबित करने का प्रमाण नहीं हैं।
    • चाउडम्मा जानबूझकर गवाही से बची, जबकि वह अदालत में मौजूद थी।

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न्यायमूर्ति संजय कौल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों की जांच की। इसमें पी.डब्ल्यू.2 हनुमंथप्पा की गवाही को अहम माना गया। उन्होंने दोनों परिवारों को व्यक्तिगत रूप से जानने के आधार पर कहा कि दासबोवी ने भीमक्का से शादी की थी और उनसे दो बच्चे (वादी) हुए थे।

“जब पति-पत्नी लंबे समय तक साथ रहते हैं तो विवाह की प्रबल संभावना मानी जाती है।” – सुप्रीम कोर्ट ने बद्री प्रसाद बनाम डिप्टी डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन (1978) मामले का हवाला देते हुए कहा।

अदालत ने यह भी माना कि चाउडम्मा गवाही से बची, जबकि वह सुनवाई के दौरान मौजूद थी। इसे अदालत ने जानबूझकर सच्चाई छुपाने की कोशिश माना।

साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि राजस्व रिकॉर्ड मालिकाना हक साबित नहीं करते और इन्हें वारिसों का हक खत्म करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

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सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया और वादियों के हक को मान्यता दी।

“हाई कोर्ट का फैसला पूरी तरह सही है। अपील निराधार है और खारिज की जाती है।”

इस मामले में किसी भी पक्ष पर लागत (कॉस्ट) नहीं डाली गई।

मामला: चौडम्मा (डी) एलआर एवं अन्य बनाम वेंकटप्पा (डी) एलआर एवं अन्य

मामला संख्या: सिविल अपील संख्या 11330 वर्ष 2011

निर्णय की तिथि: 25 अगस्त 2025

अपीलकर्ता (प्रतिवादी):

  • चौडम्मा (दिवंगत दासबोवी की कथित दूसरी पत्नी)
  • उनका पुत्र

प्रतिवादी (वादी):

  • दिवंगत दासबोवी की पहली पत्नी भीमक्का @ सत्यक्का से उत्पन्न संतान

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