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सुप्रीम कोर्ट ने 1992 हरिद्वार हत्या मामले में पीड़ित के वारिस को अपील जारी रखने की अनुमति दी

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने 1992 हरिद्वार हत्या मामले में पीड़ित के वारिस को अपील जारी रखने की अनुमति दी, धारा 372 दंप्रसं के तहत पीड़ितों के अधिकारों को मज़बूत किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 1992 हरिद्वार हत्या मामले में पीड़ित के वारिस को अपील जारी रखने की अनुमति दी

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में मृत अपीलकर्ता के बेटे को 1992 हरिद्वार हत्या मामले से जुड़े आपराधिक अपील को आगे बढ़ाने की अनुमति दी है।

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मामला पृष्ठभूमि

यह मामला 9 दिसंबर 1992 का है, जब हरिद्वार में Tara Chand (सूचक), उनके भाई वीरेंद्र सिंह और बेटे खे़म सिंह पर हमला किया गया। आरोपियों अशोक, प्रमोद और अनिल उर्फ़ नीलू ने बंदूक और धारदार हथियारों से हमला किया, जिसमें वीरेंद्र सिंह की मौत हो गई और अन्य लोग घायल हुए। इस मामले में भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं, जैसे 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 452, और 326 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

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2004 में सेशन कोर्ट ने आरोपियों को दोषी ठहराकर उम्रकैद और जुर्माने की सज़ा दी। लेकिन 2012 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि को पलटते हुए उन्हें बरी कर दिया। इसके खिलाफ खे़म सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

अपील लंबित रहने के दौरान खे़म सिंह का निधन हो गया। इसके बाद उनके बेटे राजकुमार, जो घटना में घायल भी हुए थे, ने अपील को आगे बढ़ाने के लिए स्वयं को अपीलकर्ता के रूप में प्रतिस्थापित करने की अर्जी लगाई।

सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य सवाल यह था कि क्या पीड़ित का कानूनी वारिस, जिसने धारा 372 दंप्रसं (CrPC) के तहत अपील दायर की हो, मूल अपीलकर्ता की मृत्यु के बाद कार्यवाही जारी रख सकता है।

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प्रतिवादियों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि धारा 394 दंप्रसं के अनुसार अपीलकर्ता की मृत्यु पर अपील समाप्त हो जाती है, सिवाय उन मामलों के जहाँ अपील दोषी ठहराए गए अभियुक्त द्वारा की गई हो।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि धारा 372 दंप्रसं में 2009 के संशोधन का उद्देश्य पीड़ितों और उनके वारिसों को बरी किए जाने के खिलाफ अपील करने का अधिकार देना था।

न्यायालय ने स्पष्ट किया:

“अपील करने का अधिकार, अपील को आगे बढ़ाने के अधिकार को भी शामिल करता है। यदि प्रतिस्थापन की अनुमति न दी जाए तो धारा 372 दंप्रसं की मंशा ही विफल हो जाएगी।”

न्यायालय ने मल्लिकार्जुन कोडगली बनाम कर्नाटक राज्य (2019) और संविधान पीठ के फैसले पी.एस.आर. साधानंथम बनाम अरुणाचलम (1980) पर भरोसा जताते हुए कहा कि पीड़ितों के अधिकारों की व्याख्या व्यापक रूप से की जानी चाहिए ताकि न्याय सुनिश्चित हो सके।

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सुप्रीम कोर्ट ने राजकुमार को अपने दिवंगत पिता खे़म सिंह की जगह अपीलकर्ता के रूप में प्रतिस्थापित करने की अनुमति दी। अदालत ने अपील के समाप्त होने का आदेश रद्द किया, प्रतिस्थापन आवेदन में हुई देरी को माफ किया और निर्देश दिया कि अपीलों की सुनवाई मेरिट के आधार पर की जाए।

यह फैसला पीड़ितों और उनके वारिसों के न्याय पाने के अधिकार को और मज़बूत करता है, खासकर तब जब राज्य सरकार आरोपी की बरी के खिलाफ अपील दायर नहीं करती।

केस का शीर्षक: खेम सिंह (मृतक) बनाम उत्तरांचल राज्य (अब उत्तराखंड राज्य) एवं अन्य

अधिकार क्षेत्र: आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार

केस संख्या: आपराधिक अपील संख्या 1330-1332, 2017

उद्धरण: 2025, आईएनएससी 1024

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की तिथि: 2025 (फैसले की रिपोर्ट योग्य तिथि)

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