सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, जिसमें एर्नाकुलम–त्रिशूर खंड (NH-544) पर टोल वसूली को अस्थायी रूप से निलंबित किया गया था। यह कदम यात्रियों को लंबे जाम और खराब सड़क स्थिति से हो रही परेशानी को देखते हुए उठाया गया था।
मामला तब उठा जब चार प्रमुख स्थानों - अंबल्लूर, पेरम्बरा, मुरिंगुर और चिरंगारा - पर फ्लाईओवर और अंडरपास निर्माण के कारण गंभीर जाम की शिकायतें मिलीं। हाई कोर्ट के कई निर्देशों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हुआ, जिसके बाद चार सप्ताह के लिए टोल निलंबित करने का आदेश दिया गया।
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इस फैसले को चुनौती देते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और निजी कंसैशनेयर ने दलील दी कि केवल कुछ "ब्लैक स्पॉट" ही प्रभावित हैं, जबकि 65 किलोमीटर लंबे हाईवे का बाकी हिस्सा सुचारू रूप से चल रहा है। उनका यह भी कहना था कि प्रतिदिन लगभग ₹49 लाख की राजस्व हानि से सड़क रखरखाव गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
हालाँकि, मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि अनुबंध संबंधी दायित्वों की तुलना में जनता की सुविधा अधिक महत्वपूर्ण है। हाई कोर्ट के हवाले से अदालत ने कहा:
"जब जनता कानूनी रूप से उपयोग शुल्क चुकाने के लिए बाध्य है, तो उन्हें साथ ही यह अधिकार भी है कि उन्हें निर्बाध, सुरक्षित और विनियमित सड़क उपयोग की सुविधा मिले।"
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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जिन "ब्लैक स्पॉट्स" पर वर्तमान में कार्य चल रहा है, उनके ठेकेदार M/s PST इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शंस को भी कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि NHAI स्वतः क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, बल्कि ऐसे दावों पर उचित मंच पर विचार किया जाएगा।
सड़क यातायात सामान्य होने तक टोल निलंबन जारी रहेगा, ताकि नागरिक बिना अतिरिक्त भुगतान के पहले से गड्ढों और देरी से भरी सड़कों पर यात्रा कर सकें।
केस का शीर्षक: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण एवं अन्य। बनाम ओ.जे. जनेश एवं अन्य।