सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें त्रिशूर के पलियेक्कारा टोल प्लाज़ा पर टोल वसूली को निलंबित कर दिया गया था। विवाद इस बात पर है कि जब 65 किलोमीटर लंबी सड़क पर बारह घंटे तक जाम लगा रहता है और मार्ग लगभग अनुपयोगी हो जाता है, तब भी क्या टोल वसूला जा सकता है।
केरल हाईकोर्ट ने इससे पहले चार सप्ताह तक टोल वसूली पर रोक लगा दी थी। अदालत ने खराब रखरखाव, अधूरे अंडरपास कार्य और लगातार जाम को आधार बनाया था। इस आदेश को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और कंसैशनर गुरुवायूर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, यह कहते हुए कि टोल निलंबन के कारण कुछ ही दिनों में करोड़ों का नुकसान हो चुका है।
सुनवाई के दौरान, भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया भी शामिल थे, ने एनएचएआई पर दबाव डाला कि कैसे यात्रियों को 150 रुपये का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जबकि एक घंटे की यात्रा अक्सर आधे दिन तक खिंच जाती है।
"जब 65 किलोमीटर पार करने में 12 घंटे लगते हैं तो व्यक्ति क्यों ₹150 चुकाए? एक घंटे का रास्ता ग्यारह घंटे और खा जाता है, फिर भी टोल वसूला जा रहा है," मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की।
एनएचएआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि भारी बारिश और एक ट्रक दुर्घटना के कारण जाम हुआ। इस पर न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा कि ट्रक गड्ढे में पलट गया था, जो खराब रखरखाव को दर्शाता है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दिवान (कंसैशनर की ओर से) ने कहा कि अंडरपास का काम किसी अन्य ठेकेदार को सौंपा गया है और उनके मुवक्किल को अनुचित रूप से दोषी ठहराया जा रहा है।
पीठ ने कहा कि NHAI और कंसैशनर के बीच अनुबंध संबंधी विवाद मध्यस्थता से सुलझाए जा सकते हैं, लेकिन यात्रियों के हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती। अदालत ने अब अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है और संकेत दिया है कि वह टोल निलंबन की वैधता और जनता के अधिकारों की सुरक्षा के बीच संतुलन पर विचार करेगी।
केस का शीर्षक: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण एवं अन्य बनाम ओ.जे. जनीश एवं अन्य
केस संख्या: एसएलपी(सी) संख्या 22579/2025