सुप्रीम कोर्ट ने तिरुवनंतपुरम पासपोर्ट कार्यालय के दिवंगत लोअर डिवीजन क्लर्क मोहनचंद्रन एन.के. को बरी कर दिया है, जिन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था। उनकी पत्नी, मिनी, ने 2020 के केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उनकी सजा को बरकरार रखा गया था।
अभियोग पक्ष का आरोप था कि मोहनचंद्रन ने पासपोर्ट आवेदन को जल्दी निपटाने के लिए वैध ₹1,000 पासपोर्ट शुल्क के अलावा ₹500 की रिश्वत मांगी। शिकायतकर्ता ने आरोपी के घर पर ₹1,200 दिए, जिसके बाद सीबीआई ने जाल बिछाकर उन्हें गिरफ्तार किया। हालांकि, मुकदमे के दौरान शिकायतकर्ता ने रिश्वत के दावे का समर्थन नहीं किया।
बचाव पक्ष का कहना था कि आरोपी ने केवल वैध शुल्क लिया और ₹200 अतिरिक्त राशि के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी, जो नोटों के बीच छिपी हुई थी। कोर्ट ने कहा कि इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं हैं कि आरोपी को अतिरिक्त राशि की जानकारी थी या उन्होंने पैसे गिने थे।
“यदि शिकायतकर्ता ने केवल वैध शुल्क दिया होता, तो कोई अपराध नहीं बनता। अपराध साबित करने के लिए स्पष्ट रूप से मांग का प्रमाण होना जरूरी है,” बेंच ने कहा।
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सबूतों को अपर्याप्त पाते हुए और बचाव को संभावित मानते हुए, कोर्ट ने सजा को रद्द कर दिया और संदेह का लाभ देते हुए आदेश दिया कि दिवंगत को सभी आरोपों से बरी माना जाए।
केस का नाम: मिनी बनाम सीबीआई/एसपीई कोचीन
क्षेत्राधिकार: आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार
केस का प्रकार और संख्या: आपराधिक अपील (विशेष अनुमति याचिका (CRL) संख्या 11212/2022 से उत्पन्न)
निर्णय की तिथि: 13 अगस्त 2025