केरल हाईकोर्ट ने 2002 के एक रिश्वत मामले में पशु चिकित्सक डॉ. एस.पी. मलारकन्नन को बरी कर दिया, जिससे विशेष अदालत, कोट्टायम द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया गया। यह मामला इस आरोप से जुड़ा था कि डॉ. मलारकन्नन ने एक किसान के रिश्तेदार से मृत गाय के लिए पोस्टमार्टम प्रमाणपत्र जारी करने और बीमा दावा करने के लिए ₹1,500 की मांग की थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, उन्होंने सतर्कता विभाग की ट्रैप कार्रवाई के दौरान ₹500 स्वीकार किए थे।
विशेष अदालत ने उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(d) सहपठित धारा 13(2) के तहत दोषी ठहराया था और तीन साल के साधारण कारावास और ₹25,000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने नोट किया कि मुख्य गवाह (PW10) ने अदालत में मुकरते हुए कहा कि आरोपी ने पैसे लेने के बजाय उन्हें परे धकेल दिया।
न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने टिप्पणी की:
"पहले आरोपी द्वारा रिश्वत मांगने का विश्वसनीय और ठोस सबूत पेश नहीं किया गया है। यहां तक कि अगर उनके हाथों में रंग बदलने को माना भी जाए, तब भी मांग का प्रमाण मौजूद नहीं है।"
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले नीरज दत्ता बनाम राज्य (AIR 2023 SC 330) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए रिश्वत की मांग और स्वीकृति दोनों का प्रमाण आवश्यक है। चूंकि न तो प्रत्यक्ष और न ही परिस्थितिजन्य सबूत मांग को साबित करते हैं, इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ दिया गया।
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हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यदि कोई भुगतान हुआ भी हो, तो वह विभागीय नियमों के तहत अनुमत निजी शुल्क हो सकता है। परिणामस्वरूप, डॉ. मलारकन्नन की सजा रद्द कर दी गई, जमानत बॉन्ड समाप्त कर दिया गया और उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।
केस का शीर्षक:- डॉ. एस.पी. मलारकन्नन बनाम केरल राज्य
केस संख्या:- Crl.A No. 2423 of 2009