सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें 2005 के तमिलनाडु गैस विस्फोट मामले में दो आरोपियों की बरी को पलट दिया गया था। अब ट्रायल कोर्ट का बरी करने का फैसला बहाल कर दिया गया है।
यह मामला 14 जून 2005 की सुबह हुई एक आग की घटना से जुड़ा है, जिसमें मृतका, उसके पति (अपीलकर्ता संख्या 1) और बच्चों को चोटें आईं। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि रात में जानबूझकर गैस रेगुलेटर खुला छोड़ दिया गया, जिसके कारण सुबह चूल्हा जलाने पर विस्फोट हुआ। अपीलकर्ता संख्या 1 पर आईपीसी की धारा 498A और 306 के तहत आरोप लगाए गए, जबकि अपीलकर्ता संख्या 2 पर आईपीसी की धारा 498A और 109 सहपठित 306 के तहत आरोप लगे।
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ट्रायल कोर्ट ने दोनों पक्षों के सबूतों का परीक्षण करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में विफल रहा है, और आरोपियों को बरी कर दिया। हालांकि, शिकायतकर्ता द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने मामले को वापस ट्रायल कोर्ट भेजते हुए कहा कि मरने से पहले दिए गए बयान (डाइंग डिक्लेरेशन) पर ठीक से विचार नहीं किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि डॉक्टर द्वारा दर्ज मृतका का बयान केवल यह बताता है कि गैस रेगुलेटर गलती से खुला रह गया था, जिससे आग लगी, और इसमें पति को दोषी नहीं ठहराया गया। अदालत ने कहा:
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"उपरोक्त मरने से पहले दिए गए बयान से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मृतका ने अपने पति पर कोई आरोप लगाया था।"
पीठ ने मृतका के पिता के बयानों पर शिकायतकर्ता की दलीलों को भी खारिज कर दिया और वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर घटना को दुर्घटना माना। अदालत ने आगे की सुनवाई को "निरर्थक अभ्यास" बताते हुए दोनों अपीलकर्ताओं की बरी को बहाल किया और अपील को मंजूरी दी।
केस का शीर्षक:- खाजा मोहिद्दीन एवं अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य एवं अन्य
केस संख्या:- आपराधिक अपील संख्या 3152/2025