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जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का अहम आदेश: 2020 के फर्नीचर भुगतान विवाद में मध्यस्थता का रास्ता साफ, आपत्ति खारिज

Vivek G.

प्रोमार्क टेक्सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने फर्नीचर आपूर्ति से जुड़े 2020 के भुगतान विवाद में कहा कि समय-सीमा का फैसला मध्यस्थ करेगा, याचिकाएं स्वीकार।

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का अहम आदेश: 2020 के फर्नीचर भुगतान विवाद में मध्यस्थता का रास्ता साफ, आपत्ति खारिज
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श्रीनगर में बैठी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने सरकारी विभाग और निजी कंपनी के बीच लंबे समय से चले आ रहे भुगतान विवाद में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में मध्यस्थता (Arbitration) से इनकार नहीं किया जा सकता और समय-सीमा (Limitation) से जुड़ा सवाल अब मध्यस्थ तय करेगा।

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मामले की पृष्ठभूमि

मामला प्रोमार्क टेकसॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा है, जिसे ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत श्रीनगर के विभिन्न ब्लॉक विकास कार्यालयों में फर्नीचर आपूर्ति के ठेके दिए गए थे। कंपनी का कहना था कि जुलाई 2020 में फर्नीचर की आपूर्ति और डिलीवरी पूरी कर दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद भुगतान नहीं किया गया।

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कंपनी ने पहले पंजाब के एसएएस नगर, मोहाली की सिविल अदालतों में वसूली के लिए मुकदमे दायर किए। हालांकि, अदालतों ने यह कहते हुए वादपत्र लौटाए कि उनके पास क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं है। इसके बाद कंपनी ने अनुबंध की शर्तों के तहत मध्यस्थता क्लॉज को सक्रिय किया।

सरकारी पक्ष ने अदालत में दलील दी कि भुगतान से जुड़ा दावा तीन साल की समय-सीमा के भीतर नहीं उठाया गया। उनके अनुसार, चूंकि फर्नीचर की आपूर्ति 2020 में हो गई थी और मध्यस्थता की मांग 2024 में की गई, इसलिए यह दावा समय-सीमा से बाहर है और इसे “मृत दावा” माना जाना चाहिए।

सरकार ने यह भी कहा कि कंपनी ने पहले सिविल मुकदमे का रास्ता चुना, इसलिए अब मध्यस्थता का सहारा नहीं लिया जा सकता।

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अदालत की टिप्पणी

न्यायमूर्ति संजय धर ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया। अदालत ने कहा कि,

“धारा 11 के स्तर पर अदालत को बहुत सीमित जांच करनी होती है। यदि दावा स्पष्ट रूप से समय-सीमा से बाहर न हो, तो विवाद को मध्यस्थ के पास भेजा जाना चाहिए।”

अदालत ने यह भी माना कि कंपनी ने गलत फोरम में सिविल मुकदमे चलाए, और उस अवधि को सीमा अधिनियम के तहत बाहर किए जाने का सवाल एक तथ्यात्मक मुद्दा है, जिस पर फैसला मध्यस्थ करेगा।

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अंतिम निर्णय

अदालत ने सरकार की सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि इस स्तर पर यह तय करना उचित नहीं है कि दावा समय-सीमा से बाहर है या नहीं। इसलिए तीनों याचिकाओं को स्वीकार करते हुए विवाद को मध्यस्थता के लिए भेज दिया गया।

अदालत ने अधिवक्ता आसिफा पदरू को एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया और निर्देश दिया कि वे पहले सीमा (Limitation) के प्रश्न पर निर्णय लें, उसके बाद ही दावे के गुण-दोष पर विचार करें।

Case Title: Promark Techsolutions Pvt. Ltd. vs UT of J&K & Anr

Case No.: Arb P. No. 45/2024 c/w 46/2024 & 47/2024

Case Type: Arbitration Petition (Section 11, Arbitration Act)

Decision Date: 29 December 2025

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