सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि फिलहाल दिल्ली-एनसीआर में 10 साल से पुराने डीजल वाहनों और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों के मालिकों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न की जाए। यह अंतरिम राहत 12 अगस्त को एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ पर्यावरण मामले की सुनवाई के दौरान दी गई।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने यह निर्देश दिल्ली सरकार की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें 2018 के आदेश की समीक्षा मांगी गई है। उस आदेश में ऐसे वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था।
अदालत ने कहा,
"फिलहाल, डीजल वाहनों के 10 साल और पेट्रोल वाहनों के 15 साल पुराने होने के आधार पर उनके मालिकों के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाया जाए।"
दिल्ली सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि यह प्रतिबंध मनमाना है। उन्होंने कहा कि निजी उपयोग के वाहनों को उम्र सीमा के बाद बेचना पड़ता है, जबकि समान उम्र के वाणिज्यिक वाहन चलते रह सकते हैं। याचिका में यह भी बताया गया कि 2018 के बाद से उत्सर्जन निगरानी के मानक सख्त हो गए हैं और प्रदूषण परीक्षण का दायरा भी बढ़ा है।
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सरकार ने अदालत से केंद्र और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को निर्देश देने का अनुरोध किया है कि वे उम्र-आधारित प्रतिबंध के वास्तविक पर्यावरणीय लाभों का विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन करें। मामला दिल्ली सरकार की 2024 की "एंड-ऑफ-लाइफ व्हीकल" संबंधी गाइडलाइंस को भी चुनौती देता है, जिसमें बिना वैधानिक आधार के पुराने वाहनों को स्क्रैप करने का आदेश है।
यह सुनवाई जुलाई 2025 में घोषित और फिर तुरंत वापस ली गई "पुराने वाहनों को ईंधन न देने" की नीति के बाद हो रही है, जिसे जनता के विरोध के चलते रोक दिया गया था। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
केस का शीर्षक:- एमसी मेहता बनाम भारत संघ
केस नंबर:- WP (C) नंबर 13029 ऑफ 1985 और IAs